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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
सर्वसिद्धान्त-समन्वय
पशु की भी प्रवृत्ति-निवृत्ति बिना अनुमान की नहीं होती। हाथ में हरी घास लिये पुरुष को देखकर पशु की उस ओर प्रवृत्ति और दण्डोद्यतकर पुरुष को देखकर उस ओर से निवृत्ति होती है। यह सब इष्ट-अनिष्ट का हेतु समझे बिना नहीं हो सकता। इसके सिवा अनुमान प्रमाण नहीं है। यह वचन प्रयोग भी वहीं सार्थक है, जहाँ अनुमान प्रमाण है, ऐसा अज्ञान सन्देह या भ्रम हो, कारण इन्हीं की निवृत्ति के लिये वाक्य प्रयोग की आवश्यकता होती है। परन्तु दूसरे के अज्ञान, सन्देह, भ्रम आदि का निश्चय दूसरे को प्रत्यक्ष नहीं, अतः आकृति आदि से उनका अनुमान या वचन प्रमाण से निर्णय करना होगा। यह सब बिना किये यदि जिस किसी के प्रति अनुमान प्रमाण नहीं है, ऐसा कहने लग जायँ तो एक तरह का उन्माद ही समझा जायगा। अनुमान से स्पष्ट ही विदित होता है कि अचेतन देह से भिन्न आत्मा है। इन बौद्धों में चार भेद हैं- माध्यमिक, योगाचार, सौत्रान्तिक और वैभाषिक। उनका कहना है कि जो सत् है वह क्षणिक है, जैसे दीपशिखा या बादलों का समूह। अर्थ क्रियाकारिता ही पदार्थों का सत्त्व है, वह सबमें है। अतः क्षणिकत्व भी सब में है। उनके मत में बुद्ध ही देव हैं और समस्त विश्व क्षणभंगुर है। वैभाषिक के मत में बाह्य शब्दादि अर्थ और आन्तर ज्ञान दोनों ही प्रत्यक्ष ग्राह्य हैं। परन्तु सौत्रान्तिक आन्तर अर्थात ज्ञान को ही प्रत्यक्ष और बाह्य अर्थ को अनुमेय मानता है। उसका कहना है कि एकाकार ज्ञान में शब्दज्ञान, स्पर्शज्ञान, रूपज्ञान इस तरह जो अनेक विलक्षणताओं की प्रतीति होती है, वह बिना बाह्य अर्थ के नहीं बन सकती। अतः ज्ञान की विलक्षणता के उपपादक रूप से बाह्य अर्थों का अस्तित्व अनुमानगम्य है। योगाचार सविकल्प-बुद्धि को ही तत्त्व मानता है। वह बाह्य अर्थ का अस्तित्व नहीं स्वीकार करता। माध्यमिक सर्वशून्य ही मानता है। कहा जाता है कि बुद्धदेव का परम तात्पर्य सर्वशून्याता में ही था। विज्ञानवादी प्रवृत्तिविज्ञान (नीलादिज्ञान) को मिटाकर आलय विज्ञान धारा '‘अहं अहं’ इत्याकारक को ही मुक्ति मानता है। इस पर जैनों का कहना है कि बिना किसी स्थायी आत्मा को स्वीकार किये ऐहलौकिक-पारलौकिक फल साधनों का सम्पादन व्यर्थ है। यदि आत्मा क्षणिक ही है तो कर्मकाल में आत्मा अन्य और भोगकाल में अन्य ही हुआ। परन्तु यह कथमपि संगत नहीं, क्योंकि जो कर्ता है, वही फलभोक्ता भी होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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