भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भगवान और प्रेम
आत्मा के लिये ही सम्पूर्ण वस्तुओं में प्राणिमात्र को प्रेम होता है। देवता के काम के लिये प्राणी को देवता में प्रेम नहीं होता, किन्तु आत्मा के लिये ही देवता में भी प्रेम होता है। भगवान भास्कर ब्राह्मणों के इष्टदेव अत्यन्त प्रिय विश्वप्राण हैं, परन्तु जब वे ही ग्रीष्म में प्रतिकूल प्रतीत होते हैं, तब प्राणी उनकी आँखों से ओझल होना चाहता है। जिस देवता से अपने मनोरथों की सिद्धि होती है, उसमें बड़ा ही स्नेह हेाता है। जिसकी उपासना आरम्भ करने से कुछ अनिष्ट होता है, उस देवता से उपरति हो जाती है। इसीलिये मन्त्रों में भी अप अरि मित्रादि की कल्पना तान्त्रिकों के यहाँ होती है। अतः आत्मा के लिये ही संसार की सारी वस्तु प्रिय है, यह लोक, वेद सर्वत्र ही प्रसिद्ध है। इस तरह आत्मा सम्बन्धी प्रेम प्राणिमात्र में प्रसिद्ध होने से ही कृष्ण में सब लोगों को अधिक प्रेम हुआ, क्योंकि कृष्णचन्द्र प्राणिमात्र के अन्तरात्मा थे। वही अपनी अचिन्त्य, दिव्य लीला शक्ति से सगुण, साकार, अचिन्त्य, अनन्तकल्याणगुणगण समलङ्कृत, मनोहर रूप में प्रकट हुए थे- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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