भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री भगवती-तत्त्व
पुरुषरूपिणी ‘‘शिवः शक्त्यायुक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं न चेदेवं देवोः।’’ आचार्य तो कहते हैं कि संसार में बहुत लोग अनेक गुणों से युक्त सपर्णा (पत्तोंवाली) कल्पलता का बड़े आदर से सेवन करते हैं, परन्तु मेरी तो ऐसी बुद्धि होती है कि (बिना पत्तोंवाली बेल) एक अपर्णा पार्वती का ही सेवन करना चाहिये, क्योंकि उसके संसर्ग से पुराना स्थाणु ठूंठ (पुराण पुरुषोत्तम कूटस्थ महादेव) भी केवल्यरूप परमफल प्रदान करता है। सारांश यह कि सपर्णा कल्पलता के सेवन से भी अपर्णा (पार्वती) का सेवन बहुत अधिक चमत्कारपूर्ण है। कल्पलता बहुत फल प्रदान कर सकती है, परन्तु वह मोक्ष देने में समर्थ नहीं। किन्तु अपर्णा का स्वयं तो कहना ही क्या, उसके संसर्ग से पुराना ठूँठ (पुराण पुरुष निष्क्रिय शंकर) भी मोक्षफल प्रदान कर देता है-
आगे चलकर आचार्य कहते हैं- भगवान शंकर के पास तो बृद्ध वृषभ की सवारी, भाँग, धत्तूर आदि विषों का खाना दिशा का वसन, श्मशान क्रीड़ास्थान, भुजंगभूषण आदि जो सामग्रियाँ है, वह प्रसिद्ध ही है फिर भी जो उनमें ऐश्वर्य है, वह केवल भगवती के पाणिग्रहण का ही फल है। भगवती के सौभाग्य से ही शंकर का ऐश्वर्य है- ‘भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्।।’’ इन उक्तियों का यही अभिप्राय है कि शक्ति के बिना कूटस्थब्रह्म अकिंचित्कर है, उसमें ऐश्वर्य आदि कुछ भी नहीं रह सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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