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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री रासपञ्चाध्यायी
जब वृन्दावन में निवास करें, तब धन की कैसी कमी? सैकड़ो नौकर लगा कर गोचारण आदि कराया जा सकता है, फिर स्वयं श्यामसुन्दर भगवान को वह क्यों करने दिया गया? परन्तु ये तो गोपाल की लीला थी, बाललीला, वनलीला आदि उनके विनोद थे। श्रीमद्वल्लभाचार्य के सिद्धान्तानुसार जगत के, प्रकृति के सब तत्त्व उस प्राणप्यारे के आलिंगन के लिये उत्कट उत्कण्ठित हैं। इसके लिये वन की देवी, वन की शक्ति कोई दूर्वा, कोई लता, कोई पाषाण आदि बने हैं। यदि वनलीला न हो, तो इनकी अभिलाषा कैसे पूर्ण हो? भगवान वांछाकल्पतरु कैसे कहे जायँ?
पुत्रवत्सला अम्बा यशोदा ने अपने लाल को गोचारण, वन गमन की कभी अनुमति नहीं दी। हठीले श्यामसुन्दर के हठ अथवा परिस्थिति से विवश यशोदा ने वैसा होने दिया। परन्तु वन गमन की बात सुनकर नन्दरानी न जाने कितनी बार मूर्च्छित हुई। ‘दिन भर कैसे कटेगा’ आदि चिन्ता उसके चित्त से क्षण भर के लिये भी शान्त न होती थी। गोचारण के लिये बन जाने के समय की गोपाल की मूर्ति को निहारकर गोप, गोपी सब चित्रलिखे-से खड़े रहते, वे सब उनका तब तक एकटक दर्शन करते रहते, जब तक वे अपने सखाओं के साथ ओझल न हो जाते। इसके बाद भी घण्टों उनके पीछे उड़ रही धूलि का दर्शन करते रहते और अन्त में उनकी विविध चिन्ताओं में ही बेसुध हो जाते। वन, पक्षी, मृग, जड़, चेतन सबकी यही स्थिति थी। तब नन्दरानी की स्थिति कैसी होगी, वह वर्णन के बाहर है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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