भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
घोड़ों की दशा तो श्रीगोसाईं जी महाराज ने लिखी ही है-
यदि भगवान राम कोई अन्य व्यक्ति होते तो सबको ऐसी बेचैनी क्यों होती? यद्यपि आपात दृष्टि से यह भी कहा जाता है कि उन सबको यह ज्ञान भी नहीं था कि वे हमारे अन्तरात्मा ही हैं, तथापि वस्तु स्थिति तो ऐसी ही थी। हमारी तो ऐसी भी आस्था है कि जिन्होंने भगवान रामभद्र का दर्शन या स्पर्श किया था उन्हें उनका अपने अन्तरात्मास्वरूप से अवश्य ज्ञान हो गया था; क्योंकि प्रभु की यह प्रतिज्ञा है-
अतः जिन्हें उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ था उन्हें तो उस परमतत्त्व का लाभ अवश्य हो गया था जो योगीन्द्रों को भी दुर्लभ है। उन्हें जो स्वरूपानभिज्ञ कहा जाता है वह लौकिकी दृष्टि को लेकर कहा जाता है। अन्यथा ‘कहु रे शठ हनुमान कपि’ भला मरुत्नन्दन वीराग्रणो श्रीहनुमान जी क्या बन्दर हैं? पक्षिराज जटायु का साधारण पक्षी हैं? भक्ताग्रगण्य काकभुशुण्डि जी क्या कोरे कौए ही हैं? केवल लौकिकी दृष्टि से ही उन्हें पशु-पक्षी कहा जाता है। अहा! जिन्हें प्रभु का सान्निध्य प्राप्त हुआ था उन कोल-किरात और भीलों को भी प्रभु का जो परम दुर्लभ प्रेम प्राप्त हुआ था वह क्या हमें अनायास प्राप्त हो सकता है? प्रभु कैसे प्रेम से उनकी बातें सुनते थे!-
इससे यह सिद्ध होता है कि प्रभु का स्वरूप-ज्ञान किसी को हुआ हो अथवा न हुआ हो उनके दर्शन मात्र से उनके प्रति प्रेमातिशय का होना तो स्वाभाविक ही था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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