गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 211

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
अठारहवां अध्‍याय
संन्‍यासयोग


यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।
हत्वापि स इमांल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते॥17॥

जिसमें अहंकार भाव नहीं है, जिसकी बुद्धि मलिन नहीं है, वह इसको मारते हुए भी नहीं मरता, न बंधन में पड़ता है।

टिप्‍पणी- ऊपर- ऊपर से पढ़ने पर यह श्‍लोक मनुष्‍य को भुलावे में ड़ालने वाला है। गीता के अनेक श्‍लोक काल्पनिक आदर्श का अवलंबन करने वाले हैं। उसका सच्चा नमूना जगत् में नहीं मिल सकता और उपयोग के लिए भी जिस तरह रेखा- गणित में काल्पनिक आदर्श आकृतियों की आवश्‍यकता है उसी तरह धर्म व्‍यवहार के लिए है। इसलिए इस श्‍लोक का अर्थ इस प्रकार किया जाता है- "जिसकी अहंता नष्‍ट हो गयी है और जिसकी बुद्धि में लेश मात्र भी मैल नहीं है, उसके लिए कह सकते हैं कि वह भले ही सारे जगत को मार डाले; परंतु जिसमें अहंता नहीं है उसे शरीर ही नहीं है। जिसकी बुद्धि विशुद्ध है वह त्रिकालदर्शी है। ऐसा पुरुष तो केवल एक भगवान है। वह करते हुए भी अकर्ता है, मारते हुए भी अहिंसक है। इससे मनुष्‍य के सामने तो एक न मारने का और शिष्‍टाचार- शास्‍त्र का ही मार्ग है।"

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना।
करणं कर्म कर्तेति त्रिविध: कर्मसंग्रह:॥18॥

कर्म की प्रेरणा में तीन तत्त्व विद्यमान हैं- ज्ञान, ज्ञेय और परिज्ञाता। कर्म के अंग तीन प्रकार के होते हैं- इंन्द्रिय, क्रिया और कर्ता।

टिप्‍पणी- इसमें विचार और आचार का समीकरण है। पहले मनुष्‍य कर्तव्‍य कर्म[1], उसकी विधि[2] को जानता है- परिज्ञाता बनता है। इस कर्म प्रेरणा के प्रकार के बाद वह इंद्रियों[3] द्वारा क्रिया का कर्ता बनता है। यह कर्म संग्रह है।

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदत:।
प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि॥19॥

ज्ञान, कर्म और कर्ता गुण भेद के अनुसार तीन प्रकार के हैं। गुण गणना में उनका जैसा वर्णन किया जाता है। वैसा सुन-

सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्॥20॥

जिसके द्वारा मनुष्‍य समस्‍त भूतों में एक ही अविनाशी भाव को और विविधता में एकता को देखता है उसे सात्त्विक ज्ञान जान।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ज्ञेय
  2. ज्ञान
  3. करण

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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