गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 274

गीता माता -महात्मा गांधी

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14 : गीता जी


मैं गीता माता के संदेश को हृदय में धारण करूंगा। यह विलक्षण माता है। मेरा ख्याल है, तुम जानती हो कि वह माता कहलाती है। गीता का अर्थ है गेय। वह शब्द विशेषण के रूप में ‘उपनिषद्’ के साथ प्रयुक्त होता है, जो स्त्रीलिंग है। गीता कामधेनु की भाँति है, जो सम्पूर्ण इच्छओं की पूर्ति करती है। इसीलिए वह माता कहलाती है। अपने आध्यात्मिक जीवन को कायम रखने के लिए हमें जितने दूध की आवश्यकता है, उसके लिए अमर माता हमें सम्पूर्ण दूध दे देती है। उसमें अपने लाखों बच्चों को अपने अजस्त्र थनों से दूध देने की क्षमता है।

‘बापूज़ लैटर्स टू मीरा’

24 फरवरी, 1933

गीता धर्म का अनुयायी प्रसन्नतापूर्वक बिना चीजों के काम चलाना सीखता है। गीता की भाषा में इसे स्थितप्रज्ञ कहते है, कारण कि गीता में वर्णित सुख और दुःख समान हैं। स्थितप्रज्ञ की अवस्था सुख-दुःख से ऊंची है। गीता का भक्त न सुखी होता है, न दुखी, और जब ऐसी अवस्था प्राप्त हो जाती है तब पीड़ा, आनंद, विजय, पराजय, च्युति, प्राप्ति किसी की भी अनुभूति नहीं होती।

‘बापूज़ लैटर्स टू मीरा’

4 मार्च, 1933

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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