गीता माता -महात्मा गांधी
14 : गीता जी
‘बापूज़ लैटर्स टू मीरा’ 24 फरवरी, 1933 गीता धर्म का अनुयायी प्रसन्नतापूर्वक बिना चीजों के काम चलाना सीखता है। गीता की भाषा में इसे स्थितप्रज्ञ कहते है, कारण कि गीता में वर्णित सुख और दुःख समान हैं। स्थितप्रज्ञ की अवस्था सुख-दुःख से ऊंची है। गीता का भक्त न सुखी होता है, न दुखी, और जब ऐसी अवस्था प्राप्त हो जाती है तब पीड़ा, आनंद, विजय, पराजय, च्युति, प्राप्ति किसी की भी अनुभूति नहीं होती। ‘बापूज़ लैटर्स टू मीरा’ 4 मार्च, 1933 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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