गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 248

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
4 : गीता-ध्यान


कल्पना का चित्र कुछ भी खींचा हो और उसका ध्यान किया हो तो इसमें दोष नहीं देखता। लेकिन गीतामाता के ध्यान से संतोष होता हो तो और क्या चाहिए? गीता का ध्यान दो तरह से हो सकता है: एक तो उसे माता के रूप माना है। इसीलिए सामने माता की तस्वीर की जरूरत रहती हो तो या तो अपनी माँ में ही, यदि वह मर गई हो तो, कामधेनु का आरोपण करके गीता के रूप में मानकर उसका ध्यान करना चाहिए, या कोई भी काल्पनिक चित्र मन में खींच लिया जाये।

उसे गो-माता का रूप दिया हो तो भी काम चल सकता है। दूसरी तरह हो सके तो इसे मैं ज्यादा अच्छा समझता हूँ। हम हमेशा जो अध्याय बोलते हैं, उसमें से या किसी भी अध्याय के किसी भी श्लोक या किसी शब्द का ध्यान धरना ही उसका चिन्तवन करना है। गीता में जितने शब्द हैं, उतने ही उसके आभूषण हैं, और प्रियजनों के आभूषण का ध्यान करना भी उन्हीं का ध्यान धरने के बराबर है। यही बात गीता की है। लेकिन इसके सिवा किसी को और कोई ढंग मिल जाये तो भले ही वह उस ढंग से ध्यान धरे। जितने दिमाग, उतनी ही विविधता होती है। कोई दो व्यक्ति एक ही तरीके से एक ही चीज का ध्यान नहीं करते। दोनों के वर्णन और कल्पना में कुछ-न-कुछ फर्क तो रहेगा ही।

छठे अध्याय के अनुसार जरा-सी भी की हुई साधना बेकार नहीं जाती, और जहाँ से रह गई हो, वहाँ से दूसरे जन्म में आगे चलती है। इसी तरह जिसमें कल्याण मार्ग की तरह मुड़ने की इच्छा तो जरूर हो, मगर अमल करने की शक्ति न हो, उसे ऐसा मौका जरूर मिलेगा, जिससे दूसरे जन्म में उसकी यह इच्छा दृढ़ हो। इस बारे में भी मेरे मन में कोई शंका नहीं है। मगर इसका यह अर्थ न किया जाये कि तब तो हम इस जन्म में शिथिल रहें, तो भी काम चलेगा।

ऐसी इच्छा इच्छा नहीं है, या वह बौद्धिक है, मगर हार्दिक नहीं है। बौद्धिक इच्छा के लिए कोई स्थान ही नहीं है। वह मरने के बाद नहीं रहती; पर जो इच्छा दिल में पैठ जाती है, उसके पीछे प्रयत्न तो होना ही चाहिए। मगर कई कारणों से और शरीर की कमज़ोरी से संभव है कि यह इच्छा इस जन्म में पूरी न हो और इस तरह का अनुभव हमें रोज होता है। मगर इस इच्छा को लेकर जीव देह को छोड़ता है और दूसरे जन्म में इस जन्म की उपाधियां कम होकर यह इच्छा फलती है या ज्यादा मजबूत तो होती ही है। इस तरह कल्याणकृत लगातार आगे बढ़ता ही रहता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः