गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 46

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
(श्रीमद्‌भगवद्‌गीता, अनुवाद सहित)
प्रस्‍तावना

: 1 :

जैसे स्‍वामी आनंद आदि मित्रों के प्रेम के वंश होकर मैंने सत्‍य के प्रयोगों के लिए आत्‍मकथा का लिखना आरंभ किया था, वैसे गीता का अनुवाद भी। स्‍वामी आनंद ने असहयोग के जमाने में मुझसे कहा था, ʻʻआप गीता का अर्थ करते हैं, वह अर्थ तभी समझ में आ सकता है जब आप एक बार समूची गीता का अनुवाद कर जायें और उसके ऊपर जो टीका करनी हो, वह करें और हम वह संपूर्ण एक बार पढ़ जायें। फूटकर श्‍लोकों में से अहिंसादि का प्रतिपादन मुझे तो ठीक नही लगता है।ʼʼ मुझे उनकी दलील में सार जान पड़ा। मैंने जवाब दिया, ʻʻअवकाश मिलने पर यह करूंगा। फिर मैं जेल गया। वहाँ तो गीता का अध्‍ययन कुछ अधिक गहराई से करने का मौका मिला। लोकमान्‍य का ज्ञान का भंडार पढ़ा। उन्‍होंने ही पहले मुझे मराठी, हिंदी और गुजराती अनुवाद प्रेमपूर्वक भेजे थे और सिफारिश की थी कि मराठी न पढ़ सकूं तो गुजराती अवश्‍य पढूं। जेल के बाहर तो उसे न पढ़ पाया, पर जेल में गुजराती अनुवाद पढ़ा। इसे पढ़ने के बाद गीता के संबंध में अधिक पढ़ने की इच्‍छा हुई और गीता-संबंधी अनेक ग्रंथ उल्‍टे- पल्‍टे।

मुझे गीता का प्रथम परिचय एडविन आर्नाल्‍ड के पद्य-अनुवाद से सन 1888-89 में प्राप्‍त हुआ। उससे गीता का गुजराती अनुवाद पढ़ने की तीव्र इच्‍छा हुई और जितने अनुवाद हाथ लगे, उन्‍हें पढ़ गया; परंतु ऐसी पढ़ाई मुझे अपना अनुवाद जनता के सामने रखने का बिलकुल अधिकार नहीं देती। इसके सिवा मेरा संस्‍कृत-ज्ञान अल्‍प है, गुजराती का ज्ञान विद्वत्ता के विचार से कुछ नहीं है। तब मैंने अनुवाद करने की धृष्‍टता क्‍यों की? गीता को मैंने जिस प्रकार समझा है उस प्रकार का आचरण करने का मेरा और मेरे साथ रहने वाले कई साथियों का बराबर प्रधान है। गीता हमारे लिए आध्‍यात्मिक ग्रंथ है। उसके अनुसार आचरण में निष्‍फलता में सफलता की फूटती हुई किरणों की झलक दिखाई देती है। यह नन्‍हा-सा जन-समुदाय जिस अर्थ को आचार में परिणत करने का प्रयत्‍न करता है, वह इस अनुवाद में है।

इसके सिवा स्त्रियों, वैश्‍य और शूद्र-सरीखे, जिन्‍हें अक्षर ज्ञान थोड़ा ही है, जिन्‍हें मूल संस्‍कृत में गीता समझने का समय नहीं है, इच्‍छा नहीं है, परंतु जिन्‍हें गीता रूपी सहारे की आवश्‍यकता है, उन्‍हीं के लिए इस अनुवाद की कल्‍पना है।[1] गुजराती भाषा का मेरा ज्ञान कम होने पर भी उसके द्वारा गुजरातियों को, मेरे पास जो कुछ पूंजी ही वह, दे जाने की मुझे सदा भारी अभिलाषा रही है, मैं यह चाहता हूँ अवश्‍य कि आज गंदे साहित्‍य का जो प्रवाह जोरों से जारी है, उस समय में हिदू-धर्म में अद्वितीय माने जाने वाले इस ग्रंथ का सरल अनुवाद गुजराती जनता को मिले और उसमे से वह उस प्रवाह का सामना करने की शक्ति प्राप्‍त करे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गांधीजी का अनुवाद गुजराती में है। यह उसी का हिंदी-रूपांतर है।

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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