गीता माता -महात्मा गांधी
7 : गीता कंठ करो
यहाँ गीता का अर्थ थोड़ा विस्तृत करना चाहिए। गीता, अर्थात् हमारा आधाररूप् ग्रंथ। हममें से बहुतों का आधार गीता है, इसलिए मैने गीता का नाम लिया है। पर अमतुल[1] प्रार्थना या कुरेशी गीता के बदले कुरान-शरीफ, पूरा या उसका कोई भाग, कंठ कर सकते हैं। जिन्हें संस्कृत नहीं आती हो, जो अब उसे सीख न सकते हों, वे गुजराती या हिन्दी में कंठ करें। जिन्हें गीता पर आस्था न हो और दूसरे किसी धर्म-ग्रंथ पर हो, वे उसे कंठ करें। और कंठ करने का अर्थ भी समझ लीजिए। जिस चीज को हम कंठ करें, उसके आदेशानुसार आचरण करने का हमारा आग्रह होना चाहिए। वह मूल सिद्धान्तों का घातक न होना चाहिए। उसका अर्थ हम समझ चुके हों। इसका फल है। हमारे पास ग्रंथ न हो, चोरी हो जाये, जल जाये, हमें भूल जाये, हमारी आँख चली जाये, हम वाक्शक्ति से रहित हो जायें, पर समझ बनी हो-ऐसे और भी दैवयोग सोचे जा सकते हैं- उस समय अगर अपना प्रिय आधार-रूप ग्रंथ कंठ हो तो वह हमारे लिए भारी शांति देने वाला हो जाएगा और मार्गदर्शक हो गया, संकट का साथी होगा। दुनियां का अनुभव भी यही है। हमारे पुरखा-हिन्दू-मुसलमान, ईसाई, पारसी- कुछ विशेष पाठ कंठ किया करते थे। आज भी बहुतेरे करते हैं। इन सबके अमूल्य अनुभव को हम फेंक न दें। इसमें कुछ अंशों में हमारी श्रद्धा की परीक्षा है। आश्रमवासियों से, 31 जुलाई 1932 |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अमतुस्सलाम
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