गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
अठारहवां अध्याय
संन्यासयोग
पंचैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे। हे महाबाहो! कर्म पात्र की सिद्धि के विषय में सांख्य शास्त्र में पांच कारण कहे गये हैं, वे मुझसे जान- अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्। वे पांच ये हैं- क्षेत्र, कर्ता, भिन्न-भिन्न साधन, भिन्न-भिन्न क्रियाएं और पांचवा दैव। शरीरवाङ्नोभिर्यत्कर्म प्रारभते नर:। शरीर, वाचा अथवा मन से जो कोइ भी कर्म मनुष्य नीति सम्मत या नीति विरुद्ध करता है उसके ये पांच कारण होते हैं- तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु य: । ऐसा होने पर भी, असंस्कारी बुद्धि के कारण जो अपने को को ही कर्ता मानता हैं, वह दुर्मति कुछ समझता नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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