गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 32

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-बोध
बारहवां अध्‍याय

मंगलप्रभात
4-11-30

आज तो बारहवें अध्‍याय का सार देना चाहता हूँ। [1] यह भक्तियोग है। विवाह के अवसर पर दंपती को पांच यज्ञों में इसे भी एक यज्ञ रूप से कंठ करके मनन करने को हम कहते हैं। भक्ति के बिना तथा कर्म शुष्‍क हैं और उनके बंधन रूप हो जाने की संभावना है। इसलिए भक्ति-भाव से गीता का यह मनन आरंभ करना चाहिए।

अर्जुन ने भगवान से पूछा - साकार और निराकार को पूजने वाले भक्‍तों में अधिक श्रेष्‍ठ कौन है?

भगवान ने उत्तर दिया - जो मेरे साकार रूप का श्रद्धा- पूर्वक मनन करते हैं, उसमें लीन होते हैं, वे श्रद्धालु मेरे भक्‍त हैं, पर जो निराकार तत्‍व का भजते हैं और उसे भजने के लिए समस्‍त इंद्रियों का संयम करते हैं, सब जीवों के प्रति समभाव रखते हैं, उनकी सेवा करते है, किसी को ऊँच-नीच नहीं गिनते, वे भी मुझे पाते हैं। इसलिए यह नहीं कह सकते कि दोनों में अमुक श्रेष्‍ठ है, पर निराकर की भक्ति शरीरधारी द्वारा संपूर्ण रूप से होना अशक्‍त माना जाता है, निराकार निर्गुण है, अत: मनुष्‍य की कल्‍पना से परे है। इसलिए सब देहधारी जाने-अनजाने साकार के ही भक्‍त हैं। सो तू तो मेरे साकार विश्‍व रूप में ही अपना मन पिरो। सब उसे सौंप दें। पर यह न कर सकता हो तो चित्त के विकारों को रोकने का अभ्‍यास कर, यानी यम- नियम आदि का पालन करके, प्राणायाम, आसन आदि की मदद लेकर, मन को वश में कर। ऐसा भी न कर सकता हो तो जो कुछ करता है, सो मेरे लिए करता है, इस धारणा से अपने सब काम कर तो मेरा मोह, तेरी ममता क्षीण होती जायगी और त्‍यों त्‍यों तू निर्मल शुद्ध होता जायगा और तुझमें भक्तिरस आ जायगा।

यह भी न हो सकता हो तो कर्ममात्र के फल का त्‍याग करके यानि कल की इच्‍छा छोड़ दे। तेरे हिस्‍से में जो काम आ पड़े, उसे करता रह। फल का मालिक मनुष्‍य हो ही नहीं सकता। बहुतेरे अंगों के एकत्र होने पर तब फल उपजता है, अत: तू केवल निमित्त मात्र हो जाना। जो चार रीतियां मैंने बताई हैं, उनमें किसी को कमोवेश मत मानना। इनमें जो तुझे अनुकूल हो, उससे तू भक्ति का रस ले ले। ऐसा लगता है कि ऊपर जो यम-नियम, प्राणायाम, आसान आदि का मार्ग बता आये है, उनकी अपेक्षा श्रवण-मनन आदि ज्ञानमार्ग सरल हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गांधीजी ने यह अध्‍याय सबसे पहले लिखकर भेजा था। पर अध्‍याय क्रम के लिए यह यथास्‍थान दिया गया है।—संपा०

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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