गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 104

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
पांचवां अध्याय
कर्मसंन्‍यासयोग


इस अध्‍याय में बतलाया गया है कि कर्मयोग के बिना कर्म-संन्‍यास हो ही नहीं सकता और वस्‍तुत: दोनों एक ही हैं।

अर्जुन उवाच
संन्‍यासं कर्मणां कृष्‍ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्‍छेय एतयोरेकं तन्‍मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।।1।।

अर्जुन बोले- हे कृष्‍ण! कर्मों के त्‍याग की और फिर कर्मों के योग की आप स्‍तुति करते हैं। मुझे ठीक निश्‍चयपूर्वक कहिए कि इन दोनों में श्रेयस्‍कर क्‍या है?  

श्रीभगवानुवाच
संन्‍यास: कर्मयोगश्‍च नि:श्रेयसकरवुभौ।
तयोस्‍तु कर्मसन्‍यासत्‍कर्मयोगो विशिष्‍यते।।2।।

श्रीभगवान बोले— कर्मों का त्‍याग और योग दोनों मोक्ष देने वाले हैं। उनमें भी कर्म संन्‍यास से कर्मयोग बढ़कर है।

ज्ञेय: स नित्‍यसंन्‍यासी यो न द्वेष्टि न काङ्‌क्षति।
निर्द्वन्‍द्वो हि महाबाहो सुखं बन्‍धात्‍प्रमुच्‍यते।।3।।

जो मनुष्‍य द्वेष नहीं करता और इच्‍छा नहीं करता, उसे नित्‍य संन्‍यासी जानना चाहिए। जो सुख-दु:खादि द्वंद्व से मुक्‍त है, वह सहज में बन्‍धनों से छूट जाता है।

टिप्‍पणी- तात्‍पर्य, कर्म का त्याग संन्‍यास का खास लक्षण नहीं है, बल्कि द्वंद्वातीत होना ही है- एक मनुष्‍य कर्म करता हुआ भी संन्‍यासी हो सकता है। दूसरा कर्म न करते हुए भी मिथ्‍याचारी हो सकता है।[1]

सांख्‍ययोगौ पृथग्‍वाला: प्रवदन्ति न पण्डिता:।
एकमप्‍यास्थित: सम्‍यगुभयोर्विन्‍दते फलम्।।4।।

सांख्‍य और योग और कर्म ये दो भिन्‍न हैं, ऐसा अज्ञानी कहते हैं, पंडित नहीं कहते। एक में अच्‍छी तरह स्थिर रहने वाला भी दोनों का फल पाता है।

टिप्‍पणी- ज्ञानयोगी लोक-संग्रहरूपी कर्मयोग का विशेष फल संकल्‍प मात्र से प्राप्‍त करता है। कर्मयोगी अपनी अनासक्ति के कारण बाह्य कर्म करते हुए भी ज्ञानयोगी की शांति का अधिकारी अनायास बनता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देखो अध्‍याय 3, श्‍लोक 6

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः