गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-बोध
सातवां अध्याय
मंगलप्रभात भगवान बोले, ʻʻहे पार्थ, अब मैं तुम्हें बतलाऊंगा कि मुझ में चित्त पिरोकर और मेरा आश्रय लेकर कर्मयोग का आचरण करता हुआ मनुष्य निश्चयपूर्वक मुझे सम्पूर्ण रीति से कैसे पहचान सकता है। इस अनुभव-युक्त ज्ञान के बाद फिर और कुछ जानने को बाकी नहीं रहेगा। हजारों में कोई-कोई ही उसकी प्राप्ति का प्रयत्न करता है और प्रयत्न करने वालों में कोई ही सफल होता है। पृथ्वी, जल, आकाश, तेज और वायु तथा मन, बुद्धि और अहंकारवाली आठ प्रकार की एक मेरी प्रकृति है। उसे ʻअपराʼ प्रकृति और दूसरे को ʻपराʼ प्रकृति कहते हैं, जो जीवरूप है। इन दो प्रकृतियों से अर्थात देह और जीव के संबंध से सारा जगत है। जैसे माला के आधार पर उसके मणिये रहते हैं, वैसे जगत मेरे आधार पर विद्यमान है। तात्पर्य, जल में रस मैं हूं, सूर्य- चंद्र का तेज मैं हूं, वेदों का ʼॐकार मैं हूं, आकाश शब्द मैं हूं, पुरुषों का पराक्रम मैं हूं, मिट्टी में सुगंध मैं हूँ ,अग्नि का तेज मैं हूं, प्राणीमात्र का जीवन मैं हूं, तपस्वी का तप मैं हूं, बुद्धिमान की बुद्धि मैं हूं, बलवान का शुद्धिबल मैं हूं, जीवनमात्र में विद्यमान धर्म की अवरोधी कामना मैं हूं, संक्षेप में सत्व, रजस् और तमस् से उत्पन्न होने वाले सब भावों को मुझसे उत्पन्न हुआ जान, उनकी स्थिति मेरे आधार पर ही है। मेरी त्रिगुणी माया के कारण इन तीन भावों या गुणों में रचे-पचे लोग मुझ अविनाशी को पहचान नहीं सकते। उसे तर जाना कठिन है, पर मेरी शरण लेने वाले इस माया की अर्थात तीन गुणों को लांघ सकते हैं। पर ऐसे मूढ़ लोग मेरी शरण कैसे ले सकते हैं, जिनके आचार-विचार का कोई ठिकाना नहीं है? वे तो माया में पड़े अंधकार में ही चक्कर काटा करते हैं और ज्ञान से वंचित रहते हैं, पर श्रेष्ठ आचार वाले मुझे भजते हैं। इनमें कोई अपना दु:ख दूर करने को मुझे भजता है, कोई मुझे पहचानने को इच्छा से भजता है और कोई कर्त्तव्य समझकर ज्ञानपूर्वक मुझे भजता है। मुझे भजने का अर्थ है मेरे जगत की सेवा करना। उसमें कोई दु:ख के मारे, कोई कुछ लाभ-प्राप्ति की इच्छा से, कोई इस खयाल से कि चलो, देखा जाय, क्या होता है और कोई समझ- बूझकर इसलिए कि उसके बिना उनसे रहा ही नहीं जाता, सेवा- परायण रहते हैं। ये अंतिम मेरे ज्ञानी भक्त हैं और मैं कहूंगा कि मुझे ये सबसे अधिक प्यारे हैं, या यह समझो कि वे मुझे अधिक- से-अधिक पहचानते हैं और मेरे निकट-से-निकट हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज