गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 93

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
चौथा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्‍यासयोग


इस अध्‍याय में तीसरे का विशेष विवेचन है और भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार के कई यज्ञों का वर्णन है।

श्रीभगवानुवाच
इमं विवस्‍वते योगं प्रोदतवानहमव्‍ययन्।
विवास्‍वान्‍मनवे प्राह मनुरिक्ष्‍वाकवेऽब्रवीत्।।1।।

श्रीभगवान बोले-

यह विनाशी योग मैंने विवस्वान (सूर्य) से कहा। उन्‍होंने मनु से और मनु ने इक्ष्वाकु से कहा।

एवं परम्‍पराप्राप्‍तमिमं राजर्षयो विदु:।
स कालेनेह महता योगो नष्‍ट: परंतप।।2।।

इस प्रकार परंपरा से प्राप्‍त, राजर्षियों का जाना हुआ वह योग दीर्घकाल के बल से नष्‍ट हो गया।

स एवायं मया तेऽद्य योग: प्रोक्‍त: पुरातन:।
भक्‍तोऽसि मे सखा चेति रहस्‍यं ह्योतदुत्तमम्।।3।।

वही पुरातन योग मैंने आज तुझसे कहा है। कारण, तू मेरा भक्‍त है और यह योग उत्तम मर्म की बात है।

अर्जुन उवाच
अपरं भक्‍तो जन्‍म परं जन्‍म विवस्‍वत:।
कथमेतद्विजानीयां त्‍वमादौ प्रोक्‍तवानिति।।4।।

अर्जुन बोले- आपका जन्‍म तो अभी हुआ है, विवस्‍वान का पहले हो चुका है। तब मैं कैसे जानूं कि आपने वह (योग) पहले कहा था?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः