गीता माता -महात्मा गांधी
6 : गीता का अर्थ
‘‘गीता का संदेश क्या है? मालूम होता है कि यह झगड़ा हमेशा ही चलता रहेगा। यह बात और है कि हम गीता में किस संदेश को देखना चाहते हैं और उसमें से कौन-सा संदेश निकालना चाहते हैं और यह दूसरी ही बात है कि उसको सीधे ही पढ़ने पर क्या छाप पड़ती है। जिसके दिल में यह बात जम गई है कि अहिंसा-तत्त्व ही जीवन-संदेश है, उसके लिए तो यह प्रश्न गौण है। वह तो यही कहेगा कि गीता में से अहिंसा निकलती हो तो मुझे वह ग्राह्य है। इतने भव्य ग्रंथ में से अहिंसा जैसा भव्य धार्मिक सिद्धान्त ही निकलना चाहिए; किन्तु यदि न निकलता हो तो गीता को भी रहने दीजिए। उसको आदर से पूजेंगे; लेकिन उसे प्रमाण ग्रंथ नहीं मानेंगे। ‘‘प्रथम अध्याय को पढ़ने पर यही प्रतीत होता है कि अहिंसा-वृत्ति से प्रेरित अर्जुन अशस्त्र होकर कौरवों के हाथों करने को तैयार है। हिंसा से होने वाले पाप और हानि उसकी निगाह में साफ़ नजर आते हैं। विषाद से वह कांप उठता है और कहता हैः ‘अहों बत् महत्पापं कर्तु व्यवसिता वयम्।' इस पर श्रीकृष्ण उससे कहते हैं- ‘समझदार होकर भी यह क्या बोलते हो? कोई किसी को न मारता है, न कोई मरता ही है। आत्मा अमर है और शरीर का नाश तो होगा ही। इसलिए इस धर्म प्राप्त युद्ध को लड़ लो। जय क्या और पराजय क्या? केवल अपना कर्तव्य पूरा करो।' ‘‘ग्यारहवें अध्याय में भी उसे विश्वरूप दिखाकर भगवान श्रीकृष्ण यही कहते हैं: कालोस्मि लोकक्षयकृत्प्रबृद्धो ‘‘ईश्वर की दृष्टि में हिंसा और अहिंसा दोनों समान ही हैं; लेकिन मनुष्य के लिए ईश्वर का संदेश क्या हो सकता है?‘‘ ‘युध्यस्व जेतासि रणे सपत्नान्।‘ यह क्या? गीता का संदेश यदि अहिंसा हो तो 1 और 11 अध्याय सुसम्बद्ध नहीं मालूम होते। वे उसके पोषक तो हैं ही नहीं। ऐसी शंकाओं का समाधान कौन करे? ‘‘काम की भीड़ में से कुछ समय निकालकर आप इसका जवाब दें तो कितना अच्छा हो!‘‘ ऐसे प्रश्न तो हुआ ही करेंगे। जिसने कुछ अध्ययन किया है, उसे उनका यथाशक्ति जवाब भी देना होगा; किन्तु इनका समाधान करने पर भी आखिर मुझे यह तो कहना ही पड़ेगा कि मनुष्य वही करेगा, जो उसका हृदय उसे करने को कहेगा। प्रथम हृदय है और फिर बुद्धि; प्रथम सिद्धांत और फिर प्रमाण; प्रथम स्फुरण और फिर उसके अनुकूल तर्क; प्रथम कर्म और फिर बुद्धि, इसलिए बुद्धि कर्मानुसारिणी कही गयी है। मनुष्य जो कुछ भी करना है या करना चाहता है, उसका समर्थन करने के लिए प्रमाण भी ढूंढ निकालता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज