महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
कौरवों का आक्रमण
भयानक युद्ध छिड़ गया। अर्जुन के गाण्डीव की टंकार सुनकर कौरव-सेना के कलेजे दहल-दहल उठते थे। अर्जुन के बाणों ने शत्रुओं की सेना में हाहाकार मचा दिया था। कर्ण हारकर भागा। द्रोणाचार्य, भीष्म, आदि के सारथी और घोड़े अर्जुन के बाणों से तहस-नहस हुए। कृपाचार्य द्रोणाचार्य, दुःशासन एक-एक करके सभी मैदान छोड़कर भाग निकले। अपनी सेना के हौसले को पस्त होते देख कर सब महारथियों ने मिलकर अर्जुन से यह युद्ध किया, परन्तु उसमें भी उन्हें करारी मात खानी पड़ी। अर्जुन अपने दादा, गुरु, और भाइयों को मारना नहीं चाहता था। वह उन्हें बन्दी बनाकर विराट राजा के दरबार में भी नहीं ले जाना चाहता था, इसलिए अर्जुन ने अपने गाण्डीव पर चढ़ाकर बेहोश करने वाले अनोखे तीरों से वर्षा आरम्भ कर दी। बाणों की सम्मोहन फलक से खुलकर कोई औषधि हवा में मिल जाती थी और लोग बेहोश हो जाते थे। सारी कौरव सेना बेहोश हो गई। अर्जुन ने उत्तर से कहा- "जाओ और कौरवों के कपड़े उतार लाओ। लेकिन खबरदार भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि के शरीर पर हाथ न लगाना, वे लोग मेरे पूज्य हैं।" राजकुमार उत्तर की इस विजय के समाचार राजधानी में पहुँच गये। सब लोग खुशियां मनाने लगे राजा विराट युधिष्ठिर के साथ बैठे हुए चौसर खेल रहे थे। उन्होंने खेलते-खेलते बड़े गर्व से कहा- "देखा कंक मेरे बेटे ने आज प्रतापी कौरवों को हरा दिया।" युधिष्ठिर बोले- "महाराज! बृहन्नला की चतुराई से ही यह युद्ध जीता गया।" राजा विराट को यह सुनकर बुरा लगा। उन्होंने फिर अपनी बात दोहराई। युधिष्ठिर ने फिर कहा कि बृहन्नला की कला से ही यह युद्ध जीता गया। बार-बार यह बात सुनकर राजा विराट को क्रोध आ गया उन्होंने अपने हाथ का पांसा उठाकर युधिष्ठिर के मुंह पर खींच मारा। युधिष्ठिर की नाक से खून बहने लगा द्रौपदी संयोग से उस समय महाराज को यह सूचना देने आई थी कि राजकुमार उत्तर और बृहन्नला द्वार पर आ गये हैं। परन्तु द्रौपदी ने जब युधिष्ठिर की नाक से खून बहते देखा तो झट से एक कटोरा लेकर उस लहू को धरती पर गिरने से रोक लिया। वह विराट से बोली- "महाराज! बृहन्नला इनका लहू बहता हुआ न देख पायें, नहीं तो क्रोध में आकर वे आपका अमंगल कर डालेंगे।" युधिष्ठिर ने भी झटपट अपनी नाक का लहू साफ कर लिया। इतने में ही राजकुमार भी बृहन्नला के साथ दरबार में आ गये। राजकुमार से सारी बातें सुनकर तथा पाण्डवों का असली परिचय पाकर राजा विराट अचम्भे में आ गये। उन्होंने युधिष्ठिर से क्षमा मांगी। युधिष्ठिर बोले- "हम लोग आपके उपकारों को भुला नहीं सकते। आपने जो अपराध किया, वह अनजाने में किया है।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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