महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
वनगमन
पाण्डवों की बढ़ती हुई तपस्या देख आस-पास के इलाके के लोग उनकी बहुत प्रशंसा किया करते थे। द्वैत वन के पास ही कौरवों की गोशाला भी थी, इसलिए उनके आदमी पाण्डवों के सम्बन्ध में समय-समय पर अपने मालिकों को सूचनायें दिया करते थे। कौरवों ने सुना कि भीम ने गन्धर्वों को हराकर उन्हें अपने वश में कर लिया है। उन्होंने यह भी सुना कि अर्जुन ने निशात, कवच और पौलोभ आदि अनेक जाति के दुष्टों को हराकर दीन दुखियों में बड़ा नाम पैदा किया है। यह सब खबरें कौरवों के लिए बड़ी ही दुखदाई थीं। दुर्योधन को इन समाचारों को सुनकर यह लगता कि पाण्डवों को इतने कष्ट में डालने पर भी वह उनका तेज नष्ट नहीं कर सका। दुर्योधन मन में दिन-रात तड़पा करता था, उसने कई बार यह योजना बनाई कि द्वैतवन में जाकर पाण्डवों को चुपचाप समाप्त कर दिया जाय। परन्तु महाराज धृतराष्ट्र दुर्योधन को उधर जाने की आज्ञा ही नहीं देते थे। उन्हें भय लगता था कि तपस्वी पाण्डवों को यदि अब और सताया गया तो भगवान निश्चय ही उनके पुत्रों का अमंगल करेंगे। दुर्योधन तथा दूसरे कौरव भाइयों का ख्याल था कि वहाँ जाने के लिए अनुमति न देकर उनके पिता इनका अधिक अमंगल कर रहे हैं। काने शकुनि मामा ने उन्हें एक तरकीब बतलाई। उन्होंने दुर्योधन से कहा- "अरे भाई अन्धे पिता को बहलाने के लिए तुम्हारे पास भला बहानों की कमी है? तुम्हारी गायें भी तो वहीं रहती हैं उनकी देखभाल करना तुम्हारा कर्तव्य है। तुम्हें अपने गोधन को बढ़ाना भी चाहिए। इसके लिए तुम्हें अपने पिता की आज्ञा मिल जायगी। वहाँ जाकर तुम फिर जो चाहो सो कर सकते हो। महाराज फिर तुम्हारे मन चाहे कार्यक्रम पूरा करने में कोई बाधा न डाल सकेंगे।" यह सुनकर दुर्योधन फड़क उठा। उसने अपने पिता से जाकर कहा- "पिताजी! हमारे घोसी बराबर यह खबर ला रहे हैं कि दुष्ट लोग हमारी गायों को चुरा कर ले जा रहे हैं। इस समाचार से मुझे बड़ी चिन्ता हो रही है, आप आज्ञा दें तो एक बार वहाँ जाकर हम उनका उचित प्रबन्ध कर आयें। इसके साथ ही कुछ दिन रहकर हम लोग अपना कुछ मनोरंजन भी कर लेंगे।" धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को उसके लिए आज्ञा दे दी, दुर्योधन प्रसन्न होकर अपने भाइयों के साथ द्वैतवन की ओर चल पड़ा। रास्ते भर कौरव भाई अपने मन के गलगले पकाते रहे कि पाण्डवों को हम लोग यों घेरेंगे और यों मारेंगे, परन्तु जंगल में पहुँचने के बाद उन्हें ठीक तरह से इस बात का पता न चल सका कि पाण्डव किधर रहते हैं। पाण्डवों की खोज करते हुए कौरव लोग गन्धर्वों के इलाके में घुस गये। गन्धर्व सिपाहियों ने उन्हें रोका, परन्तु घमण्डी कौरवों ने उन सिपाहियों को मार कर भगा दिया और अपने आदमियों को उस जगह एक क्रीड़ा भवन बनाने की आज्ञा दे दी। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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