महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
वनगमन
अर्जुन यह बातें सुनकर निश्चिन्त हो गये। उनकी बड़ी इच्छा थी कि वे अब फिर से अपने भाइयों के पास लौट जायें परन्तु इन्द्र ने उन्हें स्वर्ग में ही रोके रखा। वे इन्हें तरह-तरह की गुप्त विद्यायें सिखलाते थे। बूढ़ा पिता जिस भाव से अपनी संतान को उन्नति करने के लिए प्रयत्न करता है, उसी तरह इन्द्र भी अर्जुन की उन्नति के लिए तरह-तरह के उपाय बराबर करते रहे। भारत से लेकर स्वर्ग तक अनेक ऋषि मुनि प्रायः आते-जाते रहा करते थे। ऐसे तपस्वियों में एक लोमश ऋषि देवराज इन्द्र से मिलने के लिए स्वर्ग पधारे। वे भारतवर्ष में वनवासी पाण्डवों से मिल चुके थे। उन्होंने बतलाया कि पाण्डव लोग इस समय पूरे भारतवर्ष के तीर्थों में घूम-घूम कर ऋषि मुनियों की संगति से ज्ञान लाभ कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बतलाया कि कौरवों के जासूस बराबर पाण्डवों का पीछा कर रहे हैं। अर्जुन के समाचार न मिल पाने से कौरव लोग कुछ-कुछ चिन्तित भी हैं। अब यह निश्चय नहीं कर पा रहे हैं कि अर्जुन न जीते हैं या मर गये। लोमश ऋषि से यह बातें सुनकर देवराज इन्द्र ने अपनी नीति निर्धारित कर ली। उन्होंने अपने कुछ खास आदमियों को हस्तिनापुर भेजकर जनता में यह प्रचार करवाना आरम्भ कर दिया कि अर्जुन मरा नहीं, जीवित है। वह अब ऐसा भाग्यशाली हो गया है कि कौरवों का नामों निशान तक मिटा देगा। अर्जुन के सम्बन्ध में यह चमत्कारी समाचार धृतराष्ट्र को भी मिले। वह सुनकर बड़े चिन्तित हुए। उनके जासूस बराबर यह समाचार लाते थे कि भीम बदला लेने के लिए अपनी शक्ति बढ़ा रहे हैं। श्रीकृष्ण कौरवों का नाश करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। अज्ञातवास में पाण्डवों को ऐसी जगह में रखा जायगा कि कौरव उन्हें ढूंढ़ न सकेंगे, और अज्ञातवास का 13वां वर्ष बीतते ही कौरवों पर वज्रपात होगा। अन्धे धृतराष्ट्र यह सब बातें सुन-सुनकर बड़े ही चिन्तित रहा करते थे। अब अर्जुन की नई सफलताओं की अफवाहें सुनकर वे मन ही मन दहल उठे। उन्हें यह विश्वास हो गया कि उनके भतीजे उनके बेटों को मिट्टी में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगे। उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं से अपने राजनीतिक सम्बन्ध बढ़ाने पर बड़ा जोर दिया। उन्होंने अर्जुन की तलाश में अपने कुछ चतुर जासूस लगाये। लेकिन धृतराष्ट्र तथा दुर्योधन के सारे प्रबन्ध बेकार हो गये। वनवास का बारहवां वर्ष जब बीतने लगा तो उन्हें यह सूचना मिली कि पांचों पाण्डव और द्रौपदी अब एक साथ मिल गये हैं और वे इस समय द्वैतवन में हैं। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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