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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
मामा भान्जे की भेंट
अन्त में संसप्तकों को पराजित करके अर्जुन अब कर्ण की तलाश में बढ़े। उन्होंने उसे अपने शिष्य महावीर यादव सात्यकि से लड़ते हुए पाया। सात्यकि अकेला नहीं था बल्कि धृष्टद्युम्न, द्रौपदी के पांचों पुत्र, सहदेव तथा और भी कई देश के राजाओं के साथ कर्ण अकेले जूझ रहे थे। पाण्डव दल के इतने वीर मिलकर भी कर्ण को पीड़ित नहीं कर पा रहे थे। उल्टे वही उन सब को छका रहे थे। अर्जुन के पहुँचते ही कर्ण ने हौसले में आकर एक शक्ति बाण उनके ऊपर भी फेंका। लेकिन अर्जुन ने उसे बीच में ही नष्ट कर दिया। उस रण क्षेत्र में अर्जुन के पहुँच जाने से एकाएक बड़ी गर्मी आ गई। सारे पाण्डव पक्ष के लोग अब कर्ण की चिन्ता छोड़कर कौरव सेना पर टूट पड़े। कर्ण और अर्जुन एक-दूसरे को अपनी धनुर्विद्या और बाहुबल का चमत्कार जब तक दिखलाते रहे। उतनी देर में तो कौरव सेना की चटनी बन गई। हारे हुए लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। उस दिन का भयानक युद्ध देखकर सूर्य देवता भी मानो थक गये। सूर्यास्त ने कौरवों की लाज रख ली। कर्ण और अर्जुन आमने-सामने आकर भी अपनी लड़ने की चाह पूरी न कर सके। कर्ण बोला- “भगवान दैव की आज्ञा नहीं है आज थके हुए अर्जुन से युद्ध करूं। कल नया बल लेकर आना देखूंगा कि तुम कितने बड़े वीर हो। मैं तुम्हें कल थकाकर मारूंगा।” अर्जुन ने भी तप कर जवाब दिया- “अर्जुन, थकना नहीं जानता सूतपुत्र। वह तुम पर तरस खाता है। अर्जुन तुम्हें एक दिन का जीवन, जीने के लिए और दे रहा है। अपनी जो कुछ साधें पूरी करनी हों, इस बीच कर डालो।” धमकियों और ललकारों के साथ दोनों वीर अपनी-अपनी छावनियों में लौट गये। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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