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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
मामा भान्जे की भेंट
कर्ण ने नकुल के कई धनुष काटे। उनके सारथी और चारों घोड़ों को भी मार डाला। उनके रथ के अगले डंडे को भी काट दिया। नकुल ने गदा फेंकी सो उसे बीच रास्ते में ही तोड़ डाला। टूटे रथ से उतरते-उतरते खीझ कर नकुल ने लोहे का बेलननुमा हथियार मारने के लिये हाथ में उठाया ही था कि कर्ण ने तीखे बाणों से वह बेलन भी मिट्टी में मिला दिया। नकुल अपनी तलवार निकाल कर वार करने के लिए झपटे पर कर्ण ने तलवार के उठते ही उसे भी एक तीर से काट कर दो कर दिया। नकुल निहत्थे हो गये। कर्ण ने हंसते-हंसते उनके चारों ओर ऐसे तीर बरसाने आरम्भ कर दिये कि उनसे बचने के लिए नकुल घबड़ाकर कर्ण के रथ के पास दौड़ कर बढ़ गये। कर्ण ने तुरंत ही अपने धनुष की डोरी में उनका गला फंसा लिया और हंसकर कहा- “अब कभी बड़ों के सामने डींग मत हांकना, बच्चू। जाकर अपने भाइयों से कह दो कि कौरवों से लड़ना बच्चों का खेल नहीं है। जाओ, भाग जाओ।” नकुल बहुत लज्जित होकर वहाँ से चले आये। अर्जुन उस समय संसप्तकों की सेना द्वारा अटका लिये गये थे। यह बड़ी शक्तिशाली सेना थी। इसके एक भाग को अर्जुन पहले ही खत्म कर चुके थे। अब दूसरा भाग सामने आया। बड़ी घमासान लड़ाई हुई। अर्जुन भी उस समय ऐसे ताव में आ गये थे कि शत्रुओं की लोथों पर लोथें गिरा दीं। बहे हुए खून की कीचड़ और लाशों की भरमार के कारण उस दिन युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण को अपना रथ संचालन करने में बड़ी ही सावधानी बरतनी पड़ी।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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