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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
मामा भान्जे की भेंट
अर्जुन बोला- “कर्ण को तो अभी समझ लूंगा। तुम पहले मुझे युधिष्ठिर भैया के पास ले चलो।” युधिष्ठिर उस समय दुर्योधन से लड़ रहे थे। सहदेव की लड़ाई दुःशासन से, शकुनि की सुतसोम से घमासान बज रही थी। सहसा कर्ण और नकुल की मुठभेड़ हो गई। नकुल ने उसके सामने अपना रथ रोक कर कहा- “अरे नीच कर्ण ठहर तो सही, मैं बहुत दिनों से जिस दिन की प्रतीक्षा में था वह आज आ ही गया। आज तुम्हें समर में मार कर मैं अपना कलेजा ठण्डा करूंगा, क्योंकि तू ही इस सारे अनर्थ की जड़ है। तेरे ही कारण हमारे दुष्ट कौरव भाइयों को हमसे लड़ने का हौसला हुआ। बहुत बढ़-चढ़ कर कही गई इन बातों को सुनकर कर्ण हंस पड़ा। इस हंसी का एक कारण यह था कि कुन्ती मां से अपने जन्म की कथा सुन लेने के बाद कर्ण केवल अर्जुन को छोड़कर युधिष्ठिर भीम आदि अपने सभी छोटे भाइयों को मन ही मन प्यार करने लगा था। उसने कुन्ती माता को यह वचन भी दे रखा था कि अर्जुन के सिवा अपने किसी भाई को जान से नहीं मारेगा। इन्हीं सब बातों के कारण उसे हंसी आ रही थी। उसने बड़े भाई की तरह प्यार से कहा- “वाह नकुल, तुमने श्रेष्ठ राज-पुत्रों की तरह ही यह वचन कहे हैं। ठीक है, यदि तुम्हारी मुझसे लड़ने की इच्छा है तो अपनी इच्छा खुशी से पूरी करो। लेकिन एक बात कहे देता हूँ नकुल, तुमने मेरे सामने अभी ये जो घमण्ड के बोल बोले हैं या तो उन्हें सच्चा करके दिखाओ नहीं तो चुपचाप भाग जाओ, वर्ना मैं तुम्हारे इस घमण्ड को मिट्टी में मिला दूंगा।” नकुल ने अपने सोने से मढ़े हुए धनुष पर एक साथ सत्तर तीर चढ़ाकर कर्ण पर मारे। उसके सारथी को घायल किया और उसका धनुष भी काट डाला। इसके बाद तीर बरसाने में उनके हाथ बिजली बन गये। कर्ण बोला- “शाबाश अब मेरी ओर से प्रहार झेलो।” यह कहकर परम पराक्रमी कर्ण ने नकुल पर बाण चलाने प्रारंभ किये। नकुल भी उस दिन हौंसलें में आकर अपनी धनुष-विद्या का कमाल दिखलाने लगा। कर्ण पहले तो नकुल को मानो खिलाते रहे परन्तु जब वह तेज पड़ता दिखलाई दिया तो कर्ण भी कुपित होकर प्रचण्ड बन गये। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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