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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
मामा भान्जे की भेंट
शतध्निं नाम की एक बड़ी शक्तिशाली गुलेल भी हुआ करती थी जिससे पत्थर फेंके जाते थे। जलती हुई मशालें भी फेंकी जाया करती थीं। तलवार, कटार, त्रिशूल, फर्सा, गदा तथा और भी इसी तरह के सैकड़ों हथियार हुआ करते थे। आम तौर से प्यादों और घोड़ों तथा हाथियों को शराब पिला दी जाया करती थी। इन सेनाओं के साथ मारू बाजे भी बजा करते थे। इन बाजों और हुंकारों से लड़ने वालों में बड़ा जोश उत्पन्न होता था। इस जोश को शराब या भांग का नशा और भी भड़का दिया करता था। इसलिये युद्ध भूमि मनुष्यों और पशुओं का बूचड़ खाना बन जाया करती थी। कर्ण ने अपनी सेनायें इस तरह से तैयार की थीं कि शत्रु को एकाएक यह पता ही न चले कि कौन सी सेना कहाँ से आक्रमण करेगी। लेकिन श्रीकृष्ण की रणनीति कुशलता ऐसी बड़ी चढ़ी थी कि भीष्म पितामह जैसे बड़े अनुभवी लोग भी उनका लोहा मानते थे और आदर करते थे। उनके रथ हांकने की कला में बड़ी सफाई थी। वे बाएं हाथ से अपने घोड़ों की लगाम भी पकड़े रहते थे और चाबुक भी। उन्हें पूरे युद्ध क्षेत्र के नक्शे का ध्यान रहता था। घोड़ों को वह ऐसी सफाई से घुमाते फिराते थे कि उन्हें शत्रुओं के फेंके हुए हर हथियारों से कोई घात न लगे। उन्होंने देखा कि सेनापति बनकर कर्ण इस समय बड़े जोश में हैं, और वह कुछ ऐसा कमाल करके दिखलाना चाहता है कि सेनापति पद ग्रहण करने के पहले ही दिन उसकी धाक पितामह और आचार्य से अधिक जम जाये। कर्ण ने उस दिन पाण्डवों की सेना का बड़ा नाश किया। श्रीकृष्ण के जासूस पल-पल पर उन्हें युद्ध की खबरें देते जाते थे। उन्होंने सोचा कि कर्ण को अर्जुन से भिड़ा दिया जाय जिससे कि वह हमारी सेना का अधिक नुकसान न कर सके। वे अपना रथ उसी दिशा की ओर हांकने लगे। अर्जुन ने पूछा- “मुझे कहाँ लिये जा रहे हो सखा?” श्रीकृष्ण बात बनाकर बोले- “हे अर्जुन, बड़ी देर से मैंने युधिष्ठिर भैया को नहीं देखा है। भीम भाई भी पता नहीं कहाँ लड़ रहे हैं। नकुल सहदेव तो कर्ण के आगे से कन्ना काट कर भाग गये हैं और कर्ण इस समय बड़ा पराक्रम दिखला रहा है। मैं सोचता हूँ कि तुम्हारे चारों भाइयों को कर्ण के आस-पास का सैनिक बल तोड़ने पर तैनात करके तुम्हारा कर्ण से आमना-सामना करा दूं।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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