भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
विभीषण-शरणागति
हम भगवान, शास्त्र और धर्म से क्यों शत्रुता करते हैं? इसलिये न कि हम स्वयं अपने वश में नहीं हैं। मोहमयी प्रमादमदिरा के पान से जगत प्रमत हो रहा है- “पीत्वा महोमयीं प्रमादमदिरामुन्मत्तभूतं जगत्।” उसी से पतन के कारण में प्रेम और अभ्युदय के कारण में द्वेष होता है। इसीलिये वैदिक मन्त्रों द्वारा भगवान से प्रार्थना की जाती है कि हे दयालो! हे करुणामय! आप मुझे न भूलना तथा मैं भी आपको न भूलूँ- “माहं ब्रह्म निराकुर्या मा मा ब्रह्म निराकरोत्।” हाँ, ठीक भी है, क्योंकि जीव स्ववश नहीं है, माया के वश में है। अत: भगवान को न भूलना उसके वश में नहीं है- “नाथ जीव तब माया मोहा”, “तब मायावस फिरौं भुलाना।” यद्यपि हम अल्पज्ञ जीव अपने प्रियतम प्रभु को भूलकर उनकी आज्ञा का उल्लंघन करते हैं, तथापि हे प्रभो! आप ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि आप तो सर्वज्ञ हैं - “मोर न्याउ मैं पूछा साईं, तुम कस पूछउ नर की नाई।” आप मुझे कैसे भूलते हैं? क्यों उपेक्षा करते हैं? आप मेरे ऊपर ऐसी अनुकम्पा कीजिये कि मैं भी आपको न भूलूँ। यद्यपि हम मोहवश आपको भूलते हैं, तथापि पिता-माता पुत्रों को नहीं भूलते, न उनका नाश ही चाहते हैं। तो फिर प्रभो! आप अनन्तकोटि ब्रह्माण्डनायक, सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान होकर अपने पुत्रों का नाश कैसे चाहोगे? अस्तु, कहने का अभिप्राय यह है कि किसी को भी निराश होने की आवश्यकता नहीं, आवश्यकता है श्रद्धा-विश्वासपूर्वक संकल्प की। श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक भक्त लोग जिस तरह चाहते हैं, भगवान को नचाते हैं। हठीले, रसीले भक्तों के सामने भगवान को घुटने टेकने ही पड़ते हैं। मचले हुए दर्शनाकांक्षी भक्त किसी भी बात से सन्तुष्ट नहीं होते, मातृपरायण शिशु को बहुमूल्य रत्न दीजिये, सुन्दर, स्वादिष्ट पक्वान्न खाने को दीजिये, वसन, भूषण, अलंकार से उसे खूब अलंकृत एवं सुसज्जित कीजिये, उसका खूब सम्मान कीजिये, यश गाइये, उसे विविध सुख सामग्रियों एवं स्वर्ग-मोक्ष का प्रलोभन दीजिये, फिर भी वह स्नेहमयी, करुणामयी अम्बा और मातृस्तनों को छोड़कर और कुछ भी नहीं चाहता, अम्बा की अपेक्षा वह किसी भी पदार्थ से सन्तुष्ट हो ही नहीं सकता। इसी प्रकार प्रेमी भक्तों की कामना केवल प्रभु को पाने के लिये ही होती है। एकमात्र प्रभु ही उसके काम्य होते हैं। बच्चा कुछ बड़ा हुआ, इधर-उधर कुछ चलने लगा, चलते-चलते ठोकर खाकर गिर पड़ा, रोने लगा। बच्चे का रोना सुनकर माँ दौड़ी आयी। बच्चा खीझ गया, गिर पड़ा स्वयं, परन्तु क्रोध उसका माता पर हुआ। वह अपनी तोतली बोली में बार-बार कहता है- ‘तू मुझे अकेला छोड़कर क्यों गयी?’ फिर अभिमान करके रूठ जाता है। कहता है- ‘जा मैं तुझसे नहीं बोलूँगा, तेरी गोद में नहीं आऊँगा।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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