विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भारत ही में अवतार क्यों?
हे भारत! जब-जब धर्म की ग्लानि और अधर्म का अभ्युत्थान होता है, तब-तब मैं आत्मा का सृजन अर्थात अवतार ग्रहण करता हूँ। साधुओं के परित्राणार्थ, पापात्माओं के विनाशार्थ एवं धर्म संस्थापन के लिये युग-युग में मैं प्रकट होता हूँ। यहाँ यह विचार उठता है कि भगवान भारत में ही धर्मरक्षा आदि के लिये अवतार ग्रहण करके प्रकट होते हैं या अन्यान्य देशों में भी? यदि भारत में ही, तब वे भगवान कैसे? वे तो अखिल विश्व के नियामक और ईश्वर हैं। समस्त विश्व को पाप-पंक से उद्धृत करके उसे धर्मात्मा बनाना उनका कर्तव्य है। अतः विश्व की ही धर्मग्लानि, अधर्माभ्युत्थान मिटाकर धर्म संस्थापन की आवश्यकता है। विश्व के ही साधुओं और दुष्कृतियों के पालन और संहार आवश्यकता है। फिर भगवान का उक्त कार्यों के लिये भारत में ही क्यों अवतार होता है? समदर्शी, सर्वसम भगवान को सभी देशों में अवतार ग्रहण करके पूर्वोक्त कार्य करना चाहिये। यदि सभी देशों में भगवान के अवतार होते हैं तो वे अवतार पुरुष कौन-कौन हैं? साथ ही यह भी स्पष्ट होना चाहिये कि क्या सभी देशों में जो प्रचलित धर्म हैं, उन्हीं के स्थापक और पालक भगवान ही हैं? यदि ऐसा ही है तो भिन्न देशों एवं समान देशों में भी कालभेद से विरुद्ध धर्मों की स्थापना क्यों की जाती है? एक सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान भगवान के प्रतिष्ठापित और पालित धर्मों में ऐसा विरोध और भिन्नता क्यों? एक-एक धर्म के प्रतिष्ठापकों ने दूसरे धर्म प्रतिष्ठापकों विरोध करके, यहाँ तक कि दूसरे धर्मों का नाश तक करके धर्मान्तरों की स्थापनाएँ की हैं। ऐसी स्थिति में वे सभी धर्म हों या उनके प्रतिष्ठापक और पालक भगवान हों यह कैसे कहा जाय? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज