भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री भगवती-तत्त्व
अनन्तकोटि ब्रह्माण्डात्मक प्रपंच की अधिष्ठानभूता सच्चिदानन्दरूप भगवती ही सम्पूर्ण विश्व को सत्ता, स्फूर्ति तथा सरसता प्रदान करती है। विश्व प्रपंच उन्हीं में उत्पन्न होता है, स्थित होता है, अन्त में उन्हीं में लीन हो जाता है। जैसे दर्पण में आकाशमण्डल, मेघमण्डल, सूर्य-चन्द्रमण्डल, नक्षत्रमण्डल, भूधर, सागरादि प्रपंच प्रतीत होता है, दर्पण को स्पर्श करके देखा जाय, तो वास्तव में कुछ भी नहीं उपलब्ध होता, वैसे ही सदानन्दस्वरूप महाचिति भगवती में सम्पूर्ण विश्व भासित होता है। जैसे दर्पण के बिना प्रतिबिम्ब का भान नहीं होता, दर्पण के उपलम्भ में ही प्रतिबिम्ब का उपलम्भ होता है, वैसे ही अखण्ड, नित्य, निर्विकार महाचिति में ही, उसके अस्तित्व में ही, प्रमाता, प्रमाण, प्रमेयादि विश्व उपलब्ध होता है। भान न होने पर भास्य के उपलम्भ की आशा ही नहीं की जा सकती। सामान्य रूप से तो यह बात सर्वमान्य है कि प्रमाणाधीन ही किसी भी प्रमेय का सिद्धि होती है, अतः सम्पूर्ण प्रमेय में प्रमाण कवलित ही उपलब्ध होता है। प्रमाता, प्रमाण एवं प्रमेय ये अन्योन्य की अपेक्षा रखते हैं। प्रमाण का विषय होने से ही कोई वस्तु प्रमेय हो सकती है। प्रमेय को विषय करने वाली अन्तःकारण की वृत्ति प्रमाण कहला सकती है। प्रमेय-विषयक प्रमाण का आश्रय अन्तःकरणावच्छिन्न चैतन्य ही प्रमाता कहलाता है। प्रमात्राश्रित प्रमेयाकार वृत्ति को ही प्रमाण कहा जाता है। परन्तु इन सबकी उत्पत्ति, स्थिति, गति का भासक नित्य बोध आत्मा है। वही साक्षी एवं वही ब्रह्म कहलाता है। यद्यपि वह स्त्री, पुमान अथवा नपुंसक नहीं है, तथापि चिति, भगवती आदि स्त्रीवाचक शब्दों से, आत्म पुरुष आदि पुंबोधक शब्दों से, ब्रह्म ज्ञान आदि नपुंसक शब्दो से अवह्त होता है। वस्तुतः स्त्री, पुमान नपुंसक इन सबसे पृथक होने पर भी तादृक-तादृक शरीर सम्बन्ध से या वस्तु सम्बन्ध से वही अचिन्त्य, अव्यक्त, स्वप्रकाश सच्चिदानन्दस्वरूपा महाचिति भगवती ही आत्मा, पुरुष ब्रह्म आदि शब्दों से ही व्यवहृत होती है। मायाशक्ति का आश्रयण करके वही त्रिपुरसुन्दरी, भुवनेश्वरी, विष्णु, शिव, कृष्ण, राम, गणपति, सूर्य आदि रूप में भी प्रकट होती है। स्थूल, सूक्ष्म, कारण, त्रिशरीररूप त्रिपुर के भीतर रहने वाली सर्व-साक्षिणी चिति ही त्रिपुरसुन्दरी है। उसी मायाविशिष्ट तत्त्व के जैसे राम-कृष्णादि अन्यान्य अवतार होते हैं, वैसे ही महालक्ष्मी, महासरस्वती, महागौरी आदि अवतार होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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