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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भगवदवतार का प्रयोजन
श्रीभगवान के अवतार ग्रहण करने के अनेक प्रयोजन हैं- धर्मग्लानि, अधर्मा-भ्युत्थान का निवर्त्तन, धर्म का संस्थापन, सन्मार्गानुगामी साधुओं का रक्षण, दुष्कृतियों का संहार करना इत्यादि- ये सब प्रयोजन साक्षात श्रीमुख के ही कहे हैं। कुन्ती महारानी का कहना है कि अमलात्मा परमहंस से महामुनीन्द्रों को भक्तियोग-विधान करने के लिये भगवान का अवतार होता है- “नैष्कर्ममप्यच्युतभाववर्जितं न शोभते ज्ञानमलं निरंजनम्।” “नृणा निःश्रेयसार्थाय व्यक्तिर्भगवतः प्रभोः। अर्थात अव्यय, अप्रमेय, निराकार, निर्विकार, निर्गुण एवं गुणागार भगवान अनन्तकोटिकन्दर्पमदमोचन श्रीकृष्णचन्द्र परमानन्दकन्दरूप में अभिव्यक्ति जन-साधारण के कल्याणार्थ होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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