भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
वेणुगीत
श्रीवेणुगीत में श्रीगोपांगनाओं की आसक्ति का वर्णन है, पीछे के प्रकरण में श्रीवृन्दावनधाम की वर्षा और शरद ऋतुओं का वर्णन हो चुका है। वहाँ कहा गया है कि वन में आने वाली परम सौगन्ध्य-सौरस्यसम्पन्न अनेकविध पुष्पों के समशीतोष्ण वायु का आलिंगन करके श्रीवृन्दावन एवं व्रज के समस्त जनों ने तो तिग्मरश्जिन्य ताप भुला दिया। किन्तु गोपांगनाओं को अपने निरतिशय निरुपाधिक परमप्रेमास्पद प्रियतम श्रीकृष्णवियोग से जन्य ताप शान्त नहीं हुआ-
कुछ आचार्यों के मतानुसार इस अध्याय में श्रीगोपांगनाओं का आसक्तिनिरोध वर्णित है। निरोध तीन प्रकार का होता है- (1) प्रेमनिरोध, (2) आसक्तिनिरोध और (3) व्यसननिरोध। पहले राग होने से कुछ काल पर्यन्त प्रियतम से अन्य का विस्मरण होता है, यही ‘प्रेमनिरोध’ या ‘रागनिरोध’ है। ऐश्वर्य, माधुर्यव्यंजक विभिन्न लीलाओं से प्रेमनिरोध का वर्णन है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ग. स्कं. 10 अ. 20 श्लोक 45
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