भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
शक्ति का स्वरूप
श्रीभगवती ने देवी भागवत का संक्षेप में श्रीविष्णु के लिये उपदेश किया है। ‘‘सर्व खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्।’’ अर्थात यह सब कुछ सनातन मैं ही हूँ। मेरे से भिन्न कोई तत्त्व नहीं है। वेदान्तवेद्य परमतत्त्व ही शिव तथा स्कन्दपुराण के शिवतत्त्व, रामायण के राम, विष्णु पुराण के विष्णु एवं सूर्य, शक्ति, आदिरूप से प्रकट होता है। श्री हिमालय पर कृपा करके करुणामयी, कल्याणमयी अम्बा ने ही अपने दिव्यस्वरूप का उपदेश दिया हैः- ‘‘अहमेवा स पूर्वं तु नान्यत्किकिंचन्नगाधिप।’’
ब्रह्मज्ञान द्वारा इसका बाध हो जाता है। इसलिये ब्रह्म की तरह वह नित्य सत् नहीं है, परन्तु उसी के कार्यभूत प्रपंच से समस्त व्यवहार बनता है, इसलिये ब्रह्म की तरह वह असत् भी नहीं और परस्पर विरोध होने के कारण दोनों की स्थिति असंभव है, अतः सदसद् उभय स्वरूप भी नहीं है। अनिर्वचनीय वस्तुरूप मायाशक्ति मोक्षा पर्यन्त विद्यमान रहती है। जैसे पावक में उष्णता, सूर्य में किरण और चन्द्रमा में चन्द्रिका है, वैसे ही ब्रह्मात्मिका चिच्छक्तिरूपा भगवती में सहजसिद्धा माया शक्ति है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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