विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भारत ही में अवतार क्यों?
इस प्रश्न पर विचार करते हुए प्रथम यह देखना चाहिये कि गीता के श्लोक में कौन-सा धर्म विवक्षित है। इसी निर्णय में यह निर्णय भी हो जायगा कि साधु कौन और दुष्कृति (असाधु) कौन? कारण, भगवत्संस्थापित धर्म में परिनिष्ठित ही साधु और उससे विमुख असाधु समझ लिये जायेंगे। इसमें सन्देह नहीं कि आजकल गीता और गीतोक्त धर्म-कर्म को सार्वभीम या व्यापक बनाने की बुद्धि से बहुत व्यापक अर्थ किया जाता है। यद्यपि गीता की दृष्टि से गीतोक्त धर्म-निर्णय करने में सरलता है। कारण, गीता ने ही यह निश्चय कर दिया है कि शास्त्रैकसमधिगम्य कर्म ही गीता को मान्य है। तथापि आधुनिक विवेचकों की शास्त्र पर भी वही व्यापकता की भावना है। उनका कहना है कि यदि केवल वेद ही शास्त्र हों और शास्त्रैक-समधिगम्य वर्णाश्रमानुसार श्रौत-स्मार्त्त कर्म ही धर्म हो, तब तो गीता में संकीर्णता आ जाती है, जो गीता जैसे सार्वभौम ग्रन्थ के स्वरूपानुरूप नहीं है। इतने बड़े संसार में छोटा-सा भारतवर्ष, वहाँ के भी कुछ समूहों में ही वेद-शास्त्र और तदुक्त धर्मों का आदर और प्रचार है। जब गीता का भी वही शास्त्र और धर्म है तब तो वह एक देश की ही वस्तु हो जाती है। फिर वह सार्वभौम एवं सर्वमान्य ग्रन्थ नहीं हो सकता। अतः भिन्न-भिन्न देश, काल की परिस्थिति के अनुसार बुद्धिमान विवेचकों द्वारा निर्धारित किये गये कर्तव्याकर्तव्य-निर्णायक ग्रन्थ ही शास्त्र हैं। उन्हीं शास्त्रों के अनुसार नैतिक, आर्थिक, वैयक्तिक, सामूहिक अभ्युदक के अनुकूल चेष्टा या हलचलें ही कर्म या धर्म हैं, या उन-उन देशों एवं कालों के प्राणियों के लौकिक-पार-लौकिक कल्याणों के लिये सर्वमान्यप्राय बुद्धिमान महापुरुषों द्वारा रचित कार्य-अकार्य के निर्णायक ग्रंथ ही शास्त्र हैं। उन शास्त्रों के अनुसार सब तरह के अभ्यु-दयानुकूल देह, इन्द्रिय, मन, वुद्धि के जो कर्म हैं, वही धर्म हैं। ऐसा मानने में ही गीता की सर्वमान्यता सुरक्षित रहती है। यद्यपि इन महानुभावों की दृष्टि तो अच्छी है, वे गीता को सार्वभौम बनाकर उसका उपकार ही करना चाहते हैं, तथापि उसके सिद्धान्त और अभिप्राय को बाँधकर उसे सार्वभौम बनाना सम्भवतः उन्हें वांछनीय न हो। स्वरूप की रक्षा होते हुए ही उन्नति, उन्नति है। स्वरूप विनाश से उन्नति, उन्नति कदापि नहीं कही जा सकती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज