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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरामभद्र का ध्यान
दामिनी को लजाने वाले दिव्य पीताम्बर से समावृत चमकीले श्यामल जानु और ऊरु अद्भुत छविमय सम्पन्न हो रहे हैं। नाना मुक्तामणिगण-जटिल नूपुर ऐसा सुहावना लगता है, मानो मधुमत्त अलिगण युगल चरणकमल को देखकर झूम रहे हों। श्रीभगवान के चरणपृष्ठ श्यामल, तल अरुण और नखश्रेणि कुछ स्वच्छ हैं। यह मानो यमुना, गंगा तथा सरस्वती का संगम है, जिसमें अंकुश, कुलिश, कमल, ध्वज आदि चिह्न ही सुन्दर भंवर तरंग है। अथवा यह जो चक्र है वह मानो भक्तजन के अरिषड्वर्ग को नाश करने के लिये है। कमल ध्यातृचित्त-द्विरेफ को मोहन के लिये है, ध्वज भक्तजन के सर्वानर्थनाशक वज्र है, वह भक्त के पापाद्रि-भेदनार्थ ही है। पार्ष्णि मध्य में जो अंकुश है, वह मानो भक्तचित्तेभ को वश करने के ही लिये है। कमलदल सरोखी अंगुलियों पर नखमणि-श्रेणी ऐसी शोभित होती है, मानो कमलदल पर अरुणिमा से रंजित तुषार के कण रंजित होते हैं। किंवा नखों में सुन्दर अरुण ज्योतिःसम्पन्न नख-श्रेणी ऐसी मनोहर लगती है, मानो कमल-दलों पर दश मंगल सुन्दर सभा बनाकर अचल होकर बैठे हों। उन्नत चरण-पृष्ठ कदली-स्तम्भ के समान, दोनों जंघा काम-तूणीर के समान सुहावने लगते हैं। इसी तरह भावुकों ने अनेक प्रकार से भगवान श्रीरामचन्द्र के अद्भुत दिव्य रूप का वर्णन किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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