विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरामभद्र का ध्यान
श्रीवक्षःस्थल पर मनोहर सुन्दर श्यामल तरुण तुलसीदास-माल सहित मुक्तावली ऐसी शोभित होती है, जैसे महेन्द्रमणि-शिखर पर हंस की पंक्तियों से युक्त श्रीरविनन्दिनी विराजमान हों। रुचिर उपवीत तथा उनेक प्रकार के मुक्ताओं की मालाएँ ऐसी मालूम पड़ती हैं जैसे इन्द्रधनुष नक्षत्रों के साथ तिमिर-राशि पर विराजमान हो। उसे देखकर अश्विनीकुमार, मदन, सोम सभी लज्जित होते हैं। भूषण तो ऐसे ज्ञात हो रहे हैं मानो तरुण श्रृंगारतरु सुन्दर फलों से भरपूर हों। अथवा कन्दर्प ही भूषण के छद्म से शोभासार सुधाजलनिधि श्रीप्रभु के अंग से शोभा लेने आये हों। पर वे लोभी लोभवश वहीं रह गये; जा न सके। प्रभु के श्रीअंग पर रोम-रोम पर अनन्त-कोटि सोम और काम न्योछावर किये जा सकते हैं। श्रीभगवान की मनोहर भुजाएँ चमकीली और मनोहर श्यामता से युक्त हैं। उनमें कुंकुम-मिश्रित हरिचन्दन का विलिम्पन है और नाना प्रकार के अंगद, कंकण, मुद्रिकाओं से भूषित हैं। कुछ भावुकों का कथन है कि श्रीभगवान की भुजाएँ श्रीजी के स्नेहस्प वरवेलिवेष्टित वटतरु हैं। प्रेमबन्ध ही वटवारि है। मंजुल मंगल मूल ही उसका मूल है। अँगुलियाँ मनोहर शाखाएँ, रोमावली ही पत्रावली, नख ही सुमन और सुजनों के अभीष्ट ही सुफल हैं। उसकी अविचल, अमल, अनामय, सान्द्र ललित छद्मरहित, शुभ छाया समस्त सन्ताप राग, मोह, मान, मद, माया को शमन करने-वाली है। पवित्र मुनि भृग विहंग ही इसका सेवन करते हैं। उर में सुन्दर भृगुचरण और श्रीवत्स तथा लक्ष्मी का सुन्दर चिह्न है। दक्षिण वक्षःस्थल में दक्षिणावर्त विसतन्तु के समान स्वच्छ स्निग्ध रोमों की राजि है। मध्य में भृगुचरण और वाम वक्षःस्थल में वामावर्त की सुवर्णवर्ण रोमों की राजि है। यही दोनों रोम-राजियाँ श्रीवत्स और लक्ष्मी के चिह्न हैं। अनेक भूषणों से भूषित, प्रलम्ब, श्यामल, चमकीली भुजाएँ पीताम्बर संयुक्त होकर अद्भुत शोभा बढ़ रही हैं। सुन्दर कौंधनी नितम्ब-बिम्ब पर ऐसी शोभित होती है, मानो कनक कमल की अति सुहावनी पंक्ति मरकत-मणिशिखर के मध्य में जाकर विराजमान हो, अथवा मुखचन्द्र के भय से ऊपर की रेखाएँ बड़ी ही मनोहर हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज