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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरामभद्र का ध्यान
शोभा तथा छवि की सीमा चिबुक की चमकीली श्यामलता विलक्षण ही है। भावुकों ने तो कपोल और चिबुक पर कस्तूरिका और कुंकुम से मकरीपत्र और कल्पवृक्ष के मनोहर चित्र भी बनाये हैं, जो कि मन को बरबस खींच लेते हैं। अधर की मनोहर अरुणिमा से स्वच्छ मोती भी विद्रुम के समान प्रतीत होने लगता है। नयनों से निरीक्षण-काल में नयनपुतरियों की दीप्ति से मोती गुंजा के समान प्रतीत होने लगता है। जब यह कुतूहल देखकर वे हँस देते हैं तब ब्रह्मस्मित चन्द्रिका के सम्पर्क से मोती हो जाता है। यह स्मित चन्द्रिका या उदार हास मानो हृदयस्थ अनुग्रह चन्द्र की ही अमृतमयी दिव्य दीप्ति है। इस उदार हास दिव्य कल चन्द्रिका से तो मानी नभोमण्डल धौत हो जाता है। सौगन्ध्य-लोभ से आये हुए भ्रमरवृन्द भी अपनी नीलिमा खोकर स्वच्छ रूप धारण कर बैठते हैं। उदार हास वक्षःस्थल पर हार के समान शोभायमान होता है। मनोहर मुखपंकज में स्मित चन्द्रिका और उदार हास ऐसे शोभित होते हैं, मानो किसी अद्भुत नील कुवलय में विलक्षण चन्द्रमा कभी छिपता है और कभी प्रकट होता है। विशेष स्वाद की बात यह है कि अरुण अधर में मधुर बोलते समय दशनावली दामिनी के समान दमकती है। सुन्दर हास और मनोहर चितवन तो मन को लुभा लेती है। अरुण अधर के मध्य में स्निग्ध दशन-पंक्ति और मनोहर हास मनोहर लगता है, मानो विद्रुम के विमान पर सुर-मण्डली बैठकर फूल बरसा रही हो। अथवा अरुणतर अधरों में मनोहर हासयुक्त दशन-पंक्ति ऐसी शोभित होती है, जैसे सुवर्ण के कमल में तड़ितों के साथ कुलिशों ने निवास किया हो। कमलदल सरीखे दोनों नयनों में पुतलियाँ मधुकर के समान प्रतीत होती हैं। नासिका शुकतुण्ड के समान मानो लड़ती हुई धनुष की अवलियों में बचाव करने के लिये प्रकट हुई है। सुषमा के अयन नयन और कुंचित केश, कलकुण्डल और नासिका ऐसी सुहावनी लगती है, मानो चन्द्रबिम्ब के मध्य में कमल तथा मीन और खंजन को देखकर भ्रमर-मकर अपनी-अपनी गँव ताककर आये हों। शंख के सदृश कण्ठ बड़े ही शोभित हो रहे हैं। निर्मल पीताम्बर ऐसे शोभित होते हैं मानो नवनीलनीरद पर दामिनी दमकती है। अथवा सुचन्दन-चर्चित श्यामल श्रीअंग पर पीत दुकूल ऐसी छवि देता है, जैसे नील जलद पर चन्द्रिका की चमक देखकर दामिनी दमकती हो। अतः दामिनी को विनिन्दित करने वाला सुन्दर पीताम्बर सुषमा-सदन मदन को भी मोहने वाला सार-सर्वस्व सुन्दर पीताम्बर प्रभु के श्रीअंग पर बड़ा ही सुहावना लगता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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