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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरामभद्र का ध्यान
नासिका में सुन्दर मौक्तिक की शोभा अद्भुत ही है। अति मनोहर पद्मकोष के समान मुख बन्धूकपुष्प, बिम्बाफल के समान अत्यन्त सुन्दर दीप्तिमत्ता विशिष्ट अरुण अधर और ओष्ठ शोभित होते हैं। दाडिमबीज एवं कुन्दकली के समान सुन्दर दन्तावली अत्यन्त मनोहर लगती है। स्वभाव से स्निग्ध और स्वच्छ दशनावली अधर तथा ओष्ठ की दिव्य अरुणिमा से अरुण हो रही है। जैसे अधर-ओष्ठ की अरुण दीप्ति से दशनावली में स्निग्ध अरुणिमा की आभा है, वैसे ही दशनावली की भी दिव्य स्निग्ध दीप्ति अधरों पर प्रकट हो रही है। अथवा जैसे अरुण पंकज-कोश में मोतियों की अतिसुन्दर देदीप्यमान पंक्ति शोभित हो, वैसे ही भगवान के सुख पंकज में दशनावली की शोभा है। दोनों कपोल, चिबुक और भाल पर्यन्त समस्त मुख तो नीलमणीन्द्रमय चन्द्रमा, किंवा अद्भत-दीप्ति-सम्पन्न श्यामल महोमय श्रृंगार-रससार-सरोवर-समुद्भूत नील पंकज के समान है। परन्तु मुख्य मुख तो पूर्णनुराग-रससार-सरोवर-समुद्भूत सरोज ही है, क्योंकि उसमें अरुण दीप्ति का प्राधान्य है और अनुराग भी अरुण ही है। अतः तत्सार-सरोज में अति अरुणिमा का सामंजस्य हो सकता है। पूर्णानुराग-रससार-सरोवर-समुद्भूत अरुण मुख-पंकज में ही वह अधर-सुधा है जो अन्तरंग भावुक जनों के तथा प्रभु प्राणेश्वरी के निरतिशय निरुपाधिक राग का आस्पद है। अधर-ओष्ठ में तो यों ही अद्भुत सरसता, स्निग्धता एवं दीप्तिमत्ता-विशिष्ट अरुणिमा है, दूसरे वह भावुकों के राग से महानुराग-रस-रंजित हो उठती है। अधर की सूक्ष्म रेखाओं से ताम्बूल का कुछ चटकीला रस और ही शोभा दरसा रहा है। बाल सूर्य की कोमल रश्मियों से अतसी-पुष्प में जैसे स्वच्छतायुक्त अद्भुत श्यामता है, उससे भी शतकोटिगुणित स्वच्छतायुक्त मधुरता श्रीभगवान् के अंग की है। उसमें विकसित नील-कमल-कोश के समान कपोल बड़े ही सुडौल और गोल हैं। उन पर दिव्य मुक्तामणि रत्नों से जटिल सुवर्ण मणिमय कुण्डलों की अद्भुत झलक विराजमान हैं। कुण्डलों और मुकुट की झलक से नाना प्रकार की दीप्तियों से युक्त स्निग्ध श्यामल कुन्तलों की भी आभा पड़ रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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