भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
प्रेमतत्त्व
देह विरुद्ध होने से उन सबका ही त्याग किया जाता है, क्योंकि उनकी अपेक्षा देह सन्निहित एवं प्रत्यक्ष है। देह से भी इन्द्रियाँ, प्राण अन्तरंग है, अतः उनमें प्रेम अधिक होता है। मन उनसे भी समीप है, अतः उसके प्रतिकूल या उसे दुःखदायी मालूम पड़ने पर देहादि का भी त्याग किया जाता है। बुद्धि, अहमर्थ का भी निरोध आत्महित के लिये किया जाता है। “यदा पंचावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह, बुद्धिश्च न विचेष्टते’ इत्यादि से मनोनाश, वासना-क्षय के लिये प्रयत्न प्रसिद्ध ही है। इस दृष्टि से सर्वान्तरंग, सर्वसन्निहित, परम प्रत्यक्ष, प्रत्यगात्मस्वरूप ही भगवान हैं। उन्हीं में मुख्य प्रेम और वही प्रेमस्वरूप भी है, उनसे भिन्न में प्रेम की कमी स्पष्ट है। आत्मा के लिये ही सब कुछ होता है, देवता में प्रीति भी आत्मा-कल्याण के लिये ही होती है, आत्मा-प्रतिकूल देवता की उपेक्षा ही होती है। यदि भगवान प्रत्यगात्मस्वरूप नहीं, तब तो भगवान ‘शेष’ (अंग) हो जायेंगे, भगवान के लिये आत्मा नहीं, किन्तु भगवान आत्मा के लिये समझे जायँगे, अतः भगवान परोक्ष होने से अस्वप्रकाश समझे जायँगे, भगवान अनात्मा होने से बहिरंग और शेष या अंग समझे जायँगे, यह सब अनर्थ है, क्योंकि सिद्धान्ततः वस्तुगत्या भगवान ही सर्वान्तरंग, सर्वान्तरात्मा हैं, वे ही सर्वशेषी हैं, सब कुछ उनके लिये, वे किसी के लिये नहीं। भगवान ही प्रत्यगात्मा होने से स्वप्रकाश और वे ही शेषी हैं, वे ही निरतिशय, निरूपाधिक परप्रेम के आस्पद हैं। इसीलिये तो जैसे सैन्धवखिल्य (सेंधानमक का टुकड़ा) अपने आपको अपने उद्गम-स्थान समुद्र में समर्पण कर समुद्ररूप हो जाता है, वैसे ही औपाधिक चैतन्यरूप जीवात्मा अपने उद्गम-स्थान पर प्रेमास्पद भगवान में आत्मसमर्पण करके भगवत्स्वरूप हो जाता है। जैसे घटाकाश घट और घटाकाश सबको ही महाकाश में समर्पण कर देता है। -“त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पितम्” (जब आकाश से ही वायु आदि-क्रम से घट बना, उसी से घटाकाश की प्रतीति हुई, घट पृथिव्यादि में लय क्रमेण आकाश हो गया, तब घटाकाश सुतरां आकाश हो गया, यही सच्चा आत्मसमर्पण है), वैसे ही जीवात्मा भगवान से प्रादुर्भूत अपना सर्वस्व और अपने आपको भगवान में समर्पण करके सर्वदा के लिये सर्वशेषी, सर्वान्तरंग, सर्वप्रेमास्पद, सर्वान्तरात्मस्वरूप हो जाता है। अपने मिथ्या, काल्पनिक भाव का सर्वदा के लिये बाध कर, पारमार्थिक रूप को प्राप्त कर लेता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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