नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
70. बुध-विप्र-पत्नियाँ
'यज्ञ पूरा होने से पहिले वे भोजन देंगे?' एक बालक ने पूछा। 'सब यज्ञों का प्रसाद खाने योग्य नहीं होता, यह मेरे ताऊ ने कहा था।' दूसरे ने संदेह किया। 'जिस यज्ञ में पशु-बलि होती है अथवा सोमपान किया जाता है, उसमें यज्ञ पूरा होने से पहिले किसी को अन्न देना दोष माना जाता है। उस यज्ञ का प्रसाद श्रीनारायण की पूजा करने वाले नहीं लेते।' श्रीकृष्णचन्द्र ने कहा- 'ये ब्राह्मण तो सात्त्विक यज्ञ कर रहे हैं। ये कोई कंस के राक्षस हैं कि राजसिक या तामसिक यज्ञ करेंगे। कितने दिनों से तो यज्ञ कर रहे हैं। कोई यज्ञान्त तक भूखे थोड़े रहेंगे। सात्त्विक यज्ञ में मध्य में आहार करने अथवा देने से यज्ञ में दोष नहीं होता।' बालकों ने आश्चर्य से देखा कि उनका सखा कितनी बातें जानता है। सब नहीं गये, जा भी नहीं सकते थे; क्योंकि गायों को भी सम्हालना था। बहुत से अपेक्षाकृत बड़ी आयु के बालक गये। ओह! विद्या, उच्चकुल का जन्म, कर्मनिष्ठा कितनी रूक्ष एवं विवेक शून्य बना देती है व्यक्ति को। मुझे उन ब्राह्मणों पर क्रोध भी आया, दया भी आयी। कितने अज्ञ हो गये सब अभिमानवश। विचारे गोप-बालकों ने भूमि में पड़कर साष्टांग प्रणिपात किया। अत्यन्त आदरपूर्वक हाथ होड़कर यज्ञशाला के बाहर खड़े रहकर कहा- 'आप सब ब्राह्मणों को हमारा सादर प्रणाम। श्रीबलराम और कृष्णचन्द्र गोचारण करते हुए यहाँ वन में समीप आ गये हैं। बुभुक्षित हैं। हम उनके साथी हैं। उन्होंने हमें भेजा है। यदि आपमें श्रद्धा हो तो उनके लिए हमें भोजन देने की दया करें।' 'कन्हाई ने कहा है कि जिस यज्ञ में पशु बलि नहीं होती अथवा सोमपान नहीं किया जाता। उनमें अतिथि को अन्न देने से यज्ञ में दोष नहीं आता।' अर्जुन ने यह भी बतला दिया। |
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