अग्रज समस्त पशु सब सखा पशुपाल।
यमुनातट भाण्डीर-वट-निकट दीखे गोपाल।।
मधुमंगल श्रीदाम के सिर चपत धर-
हँसकर बोले- 'नेत्र बन्द रखो दिनभर।'
शीतल समुन्द वायु यमुना का कलकल,
पक्षियों को कलरव और कपियों की हलचल,
कृष्ण की विनोद-वाणी सुनकर चकित नेत्र खोल-
'मेरे कन्हाई' सब सके केवल इतना बोल।
आलिंगन सबको मिला, सबने दिया भाव से।
'देवता तू' कह दिया श्रीदाम ने चाव से।
'सचमुच बड़ा देवता हूँ, पूजा किया कर।
अपना पूरा छीका तू मुझको दिया कर!'
'देवता तू? वरदान में मोदक सब-
देता रहे मुझको तो पूजा करूँ अभी अब।
देवता तो खाता नहीं, सूँघ लेना तू भले।
'पत्र-पुष्प ले ले' मधुमंगली चले।
एक पूरी टहनी तोड़ शीश पर धरने।
छीन लिया आगे बढ़ कन्हाई के कर ने।
भंग हुआ गाम्भीर्य-विलुप्त ऐश्वर्य-ज्ञान।
आनन्द की क्रीड़ा आनन्दघन सब समान।
मैं हूँ महर्षि ब्रह्मपुत्र देता आशीर्वाद-
'अग्नि से अभय अब सब समय निर्विवाद।
राम श्याम और इनके पशु सब पशुपाल।
सब कहीं सकुशल सानन्द रहें गोपाल।'