नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
57. सुबल-दधि-दान
'तुम क्या लौटने भी नहीं दोगे?' अब बहुत क्रोध आया लगता है इसे। 'मैं इतना बुद्धू नहीं हूँ कि तुम सब पीछे लौटने को कहकर किसी और मार्ग से निकल जाओ।' मेरा सखा कहता तो ठीक है- 'मेरा कर दे दो, फिर आगे जाओ या पीछे लौटो!' 'कर कैसा? कह तो दिया कि कर हम नहीं देंगी।' अब भी यह अकड़ रही है। 'देगी कैसे नहीं? मुझे लेना आता है!' अब और बोलती जा! मोहन ने झपटकर उसकी दहेंड़ी छीन ली है। क्या हुआ कि दहेंड़ी थोड़ी फूट गयी। 'कनूँ! मूझे भूख लगी है।' मधुमंगल दौड़कर समीप आ गया। यह भोजन दीख जाय तो दूर रह नहीं सकता। 'पहिला भाग ब्राह्मण का होता है उपार्जन में।' 'लूट में क्यों नहीं कहता?' चन्द्रावली पीछे मुख करके हँस पड़ी है। सब लड़कियाँ हँसने लगी हैं। 'तू भोग लगा!' मेरा सखा सदा से परमोदार है। यह स्वयं तो तब खायगा, जब सबको मिल जायगा। मधुमंगल जम गया दहेंड़ी लेकर श्वेत-पर्वत की शिला पर। 'सुबल! तू दादा को दे आयेगा?' भला यह भी पूछने की बात है। मैं तो यह सोचे ही बैठा हूँ। अब छीना-झपटी चलने लगी है। इसमें दहेंड़ियाँ फूटेंगी, दही फैलेगा। लड़कियों के वस्त्र कुछ फटेंगे, आभूषण- विशेषतः हार टूटेंगे। ये सब भी तो कम हठी नहीं हैं। अपनी दहेंड़ियाँ गोद में दुबकाकर उसी पर झुकी हैं। श्याम अब इन्हें गुदगुदाये नहीं, बल न लगाये तो दहेंड़ी पावेगा? एक पूरी दहेंड़ी बिना फूटे पा गया तो यह दादा को मिलनी ही चाहिये। 'तू आँखें क्यों दिखाती है? ले, दही खा ले!' भद्र ने रत्ना के मुख पर पूरी मलाई फेंककर उचित ही किया। इन लड़कियों को भी तो कुछ दही मिलना चाहिये। अब तो सभी सखा यह क्रीड़ा करेंगे ही। लड़कियाँ हँसती भी हैं और रुष्ट भी होती हैं। यह एक साथ हँसना-रोना लड़कियों को आ कैसे जाता है? 'कनूँ! अभी तेरी दहेंड़ी रह गयी है!' भद्र हँसता क्यों है? यह तो मैं भी देखता हूँ कि मेरी बहिन सखियों के मध्य में सिकुड़ी है। यह कितनी तो भीरु है। इसे क्या झगड़ना आता है? श्याम का भाग है मेरी बहिन की दहेंड़ी का दही, यह मैं भी जानता हूँ। लेकिन बहिन से दही छीन लेना सरल नहीं है। सब सखियाँ उसी पर झुकी उसकी रक्षा करने लगी हैं। अब इन सबों की दहेंड़ियाँ हाथ से चली गयीं तो एक तो सब मिलकर बचा लें। कन्हाई को कठिनाई तो हुई; किन्तु मेरा सखा असफल होना नहीं जानता। गुदगुदाकर, झकझोरकर यह बहिन की दहेंड़ी भी पा गया है और अब मुझे संकेत मिल गया है। हम दोनों इसी एक ही दहेंड़ी में साथ दधि खायँगे। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज