नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
56. गणेश-गोचारण
मुझे मस्तक झुकाकर प्रथम पूजन स्वीकार ही करना पड़ता है। मैं देखता हूँ कि कोई सुर नहीं जो संकुचित न हो रहा हो किंतु व्रजराजकुमार पूजन करें तो उसे साक्षात स्वीकार करने का सौभाग्य छोड़ा भी तो नहीं जा सकता। धरा और गगन दोनों वाद्य-ध्वनि से गूँज रहे हैं। सुमन-वृष्टि हो रही है नभ से। गोपियों का मंगल गान, सूत-मागधों का स्तवन, विप्रवर्ग का मन्त्रपाठ और नभ में अप्सराओं का नृत्य, धरा पर नटों का प्रदर्शन- कहना कठिन है कि धरा के इन कलाकारों में कितने अमरावती अथवा अन्य दिव्यलोकों से आकर मिल गये हैं। श्रीव्रजेन्द्रनन्दन पूजन कर रहे हैं। महर्षि केवल मन्त्रोच्चारण करते हैं और ये बिना संकेत सविधि अर्जन करते जा रहे हैं। मातृका, नवग्रह, लोकपाल, दिक्पालादि का पूजन समाप्त हो गया। अरणि-मन्थन का तो नाम करना था। मन्थन-रज्जु घूमी और हव्यवाह प्रकट हो गये। अग्न्याधान करके महर्षि ने पूजन कराया- यज्ञ सम्पन्न हुआ। पूर्णाहुति दी गयी आज्य की अखण्ड वसुधारा देकर। 'धर्म!' वास्तविक पूजन तो अब आरम्भ हुआ। अर्घ्यपात्र उठाकर श्रीकृष्णचन्द्र ने पुकारा और हुंकार के साथ हिमधवल व्रजराज का महावृषभ आकर खड़ा हो गया। मैं देखता हूँ कि सत्त्वमूर्ति साक्षत धर्म ही पधारे हैं यहाँ। चरण धोये नवघन सुन्दर ने। श्रृंगों पर जल डालकर महर्षि ने उसके सीकरों से श्यामसुन्दर को सिञ्चित किया। चन्दन, अक्षत, माल्य, धूप-दीप के द्वारा सम्यक पूजन हुआ। गोपाल ने अञ्जलि भरकर मोदक, अन्न और मृदुल दूर्वादल देकर नीरांजन के अनन्तर पदों पर पुष्पाञ्जलि दी और प्रणिपात किया सम्मुख भूमि में पड़कर। 'भद्र! तू पहिले पूजन कर नन्दी का।' अब सखाओं को प्राथमिकता देने लगे हैं। 'कृष्णचन्द्र! तुम लोग एक-एक धेनु तथा वत्स का पूजन कर लो!' महर्षि ने स्नेहपूर्वक कहा- 'गोप सबका पूजन कर देंगे।' महर्षि की बात उचित है। लक्ष-लक्ष गोधन एकत्र है। बालक केवल तिलक भी करें तो समय कितना लगेगा? 'हम सबका पूजन करेंगे!' गोपाल आज किस वृषभ, गाय अथवा बछडे़ को अपने करों की अर्चा से वञ्चित करें। इस समारम्भ में किस पशु को यह सम्मान देने से पृथक रखें ये पशुपाल? इनका आग्रह भी उचित है- 'हम-सब सबका पूजन करेंगे।' |
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