नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
53. यमराज-अघोद्धार
अनेक रंगों के बछड़े-बछड़ियाँ पूँछ उठाये फुदकते आगे जा रहे हैं। इन सहस्रों में-से प्राय: सभी बार-बार पीछे लौटते हैं और श्याम को सूँघकर कूदते हैं। कोई हाँकने को वेत्र उठाये तो उस वेत्र को ही सूँघ लेना चाहते हैं। इनके पीछे मयूर मुकुटी, वनमाली कृष्णचन्द्र सघन अलकावली से घिरा चन्द्रमुख, भाल पर गोरोचन-तिलक, बड़े-बड़े़ चपल लोचनों में अञ्जन। कण्ठ में कौस्तुभ, मुक्तामाला, कन्धे पर पटुका, कटि में पीली कौशेय कछनी, भुजाओं में रत्नांगद। कंकण, किंकिणी भूषित ये भुवन मोहन। कछनी में मुरली, कक्ष में श्रृंग, वाम स्कन्ध पर वेष्टित रज्जु, कर में अरुण वेत्र दण्ड। इनके पीछे सहस्त्रों सुन्दर बालक और सबके कन्धों पर छीके हैं अनेक रंगों के। बिना छीके केवल दो हैं, ये स्वयं और मधुमंगल। ब्राह्मण मधुमंगल तो क्रीड़ा के लिए ही आता है। उसे कहाँ वत्स-चारण करना है और वह छीका क्यों लाये? उस अग्रभोजी का स्वत्व तो सब में है। वन के सब पशु-पक्षी स्वागत में वन सीमा पर समुद्यत मिलते ही हैं। अनेक दौड़कर आगे आकर बछड़ों में मिल जाते हैं और पक्षी गगन में उड़कर वितान ही नहीं बनाते, बछड़ों की पीठ पर भी आ बैठते हैं। बालकों को वन में क्रीड़ा ही तो करनी है। ये वन पुष्प, कटेरी, त्रिपतिका, गुञ्जादि के फल, किसलय, वनधातु ढूँढ़ेंगे। परस्पर श्रृंगार करेंगे। मधुमंगल के उदर पर नन्दनन्दन रामरज, गौरिक से भारी कपि बनावेंगे तो भद्र उसके कपोल पर काली पिपीलिकायें अंकित करेगा। तोक उसकी पीठ पर काक बनाकर कूदेगा-हँसेगा। सब सक दूसरे को अलंकृत करेंगे, उनके अंगों पर चित्र-रचना करेंगे। दोनों हाथ फैलाकर घूमना और गिरकर हँसना, पशु-पक्षियों के साथ दौड़ना, नृत्य करना, गायन, कपियों के साथ वृक्षों पर चढ़ना तो नित्य की क्रीड़ाएँ हैं। आज एक नवीन विनोद सूझा है बालकों को। अवसर पाते ही किसी का छीका उठाकर भाग पड़ते हैं और वह समीप आता है तो छीका दूसरे को पकड़ा देते हैं। ताली बजाते हैं, हँसते हैं। कइयों ने दूसरे सखाओं के छीके छिपा दिये हैं। भद्र ने अर्जुन के छीके की सब सामग्री अपने, ऋषभ के और विशाल के छीके में भर ली और अब चिढ़ा रहा है अर्जुन को-'तू घर से ख़ाली छीका लाया था या कोई कपि तेरा कलेऊ खा गया?' |
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