नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
41. विश्वकर्मा-नन्दगाँव
'स्वामी इतने उत्कण्ठित थे, अत: मेरे हृदय में भी भावना उठी- 'मैं भी उन आनन्दकन्द का पाद-स्पर्श प्राप्त कर पाता!' मेरे औढरदानी प्रभु के लिए कुछ अदेय नहीं। उन्होंने मेरी पीठ अपना दक्षिण कर धर दिया- 'वत्स! वे तुम्हारे ऊपर आवास बना लेंगे; किंतु तुम अपना एक स्थूल-भौतिक गिरिरूप बना लो और गिरिराज के समीप कुछ काल बैठकर तपोनिरत रहो।' मैं अपने आधिदैवत रूप से अपने स्वामी भगवान शशांक शेखर का वहन करता हूँ। वह मेरी धर्म की अधिष्ठातृ वृष-मूर्ति है और यहाँ मैंने यह अपना आधिभौतिक स्वरूप बना लिया है। जब आनन्दकन्द श्रीनन्दनन्दन धरा पर पधार रहे हैं तो उनकी सर्वाधिक सेवा इसी रूप में मुझे सम्भव लगती है। मैं महेश्वर का वाहन हूँ। मुझे मेरे सर्वज्ञ स्वामी का वरदान मिल गया है। अत: अवश्य वे सर्वेश्वर मेरे पृष्ठ प्रदेश को अपने आवास के योग्य स्वीकार कर लेंगे।' 'वत्स! तुम चकित मत बनो!' तनिक रुककर वे विश्ववन्द्य वृषभध्वज वाहन उसी भाषा में समझाने लगे- 'यहाँ इस नित्यधाम में बैठने का स्थान प्राप्त होना मेरे लिए भी सौभाग्य ही है और सदाशिव का वरदान न होता तो वह सुलभ नहीं होता। योगमाया भगवती ने तुम्हें दृष्टि दे दी है। तुम गिरिराज का दर्शन करके स्वयं मेरी स्थिति समझ सकते हो।' गिरिराज की ओर देखते ही मैंने वहीं साष्टांग प्रणिपात किया। यह सम्पूर्ण शैल साक्षात श्रीनारायण- प्रत्येक शिला शालिग्राम? वरदान-प्राप्ता भगवती वृन्दा-गण्डकी के अतिरिक्त भी धरा पर श्रीहरि अपने इस आधिभौतिक शालिग्राम रूप में कहीं निवास करते हैं, यह मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। 'श्रीकृष्णांशोद्भव ही हैं श्रीनारायण एवं मेरे प्रलयंकर प्रभु भी।' नन्दीश्वर ने ही मुझे चकित देखकर समझाया- 'गिरिराज गोवर्धन श्रीकृष्णचन्द्र के श्रीविग्रह में वक्षस्थल के भाग से व्यक्त हुए। अत: ये शालिग्राम स्वरूप तो हैं ही। धरा पर ये हिमवान के यहाँ पधारे और त्रेता में मार्यादा पुरुषोत्तम के लिए जब सेतु-बन्धन होने लगा, पवन-पुत्र इन्हें उठा लाये पितृगृह से उन साकेताधीश के दर्शन का आश्वासन देकर; किंतु इन्हें उस रूप के दर्शन से कहाँ आनन्द मिलना था। अत: उन्हीं लीलामय की आज्ञानुसार सब कपियों को वे जहाँ थे, वहीं अपने कर के पाषाण डाल देने पड़े। पवन-पुत्र अपने प्रभु की आज्ञा-पालन को विवश इन्हें व्रज में रख गये। उन वायुनन्दन की विवशता सुनकर राघवेन्द्र ने हँसकर द्वापर में इन पर विहार करने का वचन दे दिया।' |
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