नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
39. उपनन्द ताऊ-गोकुल-त्याग का प्रस्ताव
'कंस का सगा भाई सुनामा राक्षसों की भारी सेना लेकर आज लगभग मध्याह्न में यमुना के पार उतरा।' मैंने जो समाचार पुलिन्दों से पाया था वह सबको सूचित किया। 'वे उन मायावी राक्षसों के पद-चिह्न थे? वे वृक बनकर आये थे यहाँ?' युवकों में-से एक अंगार नेत्र किये भल्ल उठाये उठ खड़ा हुआ। 'लेकिन पद-चिह्न प्रभात में पाये गये थे!' हमारे छोटे भाई नन्दन ने शंका की। 'अभी तो वृक हमारे शत्रु नहीं- सहायक ही सिद्ध हुए हैं!' मैंने सबको शान्त करके पूरा समाचार दिया- 'सुनामा की सेना को कंस ने आदेश दिया था कि वह हमारे राम-श्याम को बन्दी बनाकर मथुरा ले आवे। बहाना यह कि हम गोपों ने उसे वार्षिक कर बराबर नहीं दिया हैं।' 'कंस को कर देना अनिवार्य तो नहीं है? उत्तेजित हो जाना युवकों का स्वभाव है। अनेक उठ खड़े हुए थे- 'हम अब तक मथुरा के सिंहासन को सम्मान के प्रतीक रूप में कभी-कभी स्वेच्छा से कर देते रहे हैं। गोकुल मथुरा के परतन्त्र तो कभी नहीं माना गया! सुनामा की सेना और कंस से भी संग्राम में समझ लेंगे हम। अब उसे कभी यहाँ से कर नहीं मिलेगा।' 'सुनामा ने तो जैसे ही महावन में प्रवेश किया, उसकी सेना पर चारों ओर से भेड़ियों के यूथ टूट पड़े।' मैंने पुलिन्द-गण से प्राप्त पूरा समाचार सुना दिया- 'ऐसे अद्भुत भेड़िये कि राक्षसों के शस्त्रों से उनमें-से एक भी मारा नहीं गया। उलटे राक्षसों की आधी से अधिक सेना उन्होंने समाप्त कर दी। सुनामा किसी प्रकार शेष को लेकर यमुना में कूदा और तैर कर उस पार पहुँचा।' युवकों में हर्ष व्याप्त हुआ; किन्तु वे कंस से अभी निबट लेने के पक्ष में थे। मैंने उन्हें समझाया- 'सबसे पहिली आवश्यकता है अपने राम-श्याम को सुरक्षित करना। हम सब वैष्णव हैं। वृकों को वैसे भी पालतू नहीं बनाया जा सकता। अब यहाँ गायों को वन में ले जाना सम्भव नहीं रहा। वन से तृण-काष्ठ नहीं लाया जा सकता। वृकों का समुदाय कितना बड़ा है, कोई अनुमान नहीं है। शिशुओं की, गायों की, सबकी ही सुरक्षा इसी में है कि हम सब गोकुल त्याग दें और यहाँ से वृन्दावन चलें। मैं वहाँ नन्दीश्वर गिरि का परिसर देख आया हूँ। हम सबके लिए सब प्रकार की ही सुविधा-सुरक्षा वहाँ उपलब्ध हैं।' |
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