नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
39. उपनन्द ताऊ-गोकुल-त्याग का प्रस्ताव
'भेड़ियों के पदचिह्न?' मैं धक से हो गया- 'वे नन्दद्वार तक आ पहुँचे थे? श्याम-राम सकुशल तो हैं? गोकुल में कोई उत्पात तो उन्हाेंने नहीं किया?' 'वे कब आये थे, किसी को पता नहीं।' पत्नी ने कहा- 'सम्भवत: रात्रि में आये होंगे। कुछ कर नहीं सके और कहीं वन में चले गये। यशोदा ने वहीं से पुकारना प्रारम्भ किया तो छोटे देवर नन्दन दौडे़ पहुँचे। उन्होंने पहिचाना कि वे वृकों के पद चिह्न हैं। पता नहीं वे कितने थे और किधर गये। सहस्रों पद चिह्न हैं वहाँ और सब दिशाओं में उनके यूथ गये लगते हैं। देवर ने दोड़-दौड़कर सबको सूचित किया। गायें आज चरने नहीं जा सकीं।' 'महावन में सभी पशु शान्त स्वभाव के ही थे।' मैं बोल उठा- 'केशरी भी कुछ थे; किंतु उन्होंने कभी गोष्ठ में प्रवेश नहीं किया था। वन में भी कभी किसी गौ या बछड़े पर आक्रमण नहीं किया था। वृक यहाँ थे ही नहीं। ये भेड़िये तो बहुत धूर्त और भयंकर होते हैं। ये यूथों में रहते हैं और अपने स्ववर्ग का भी शव नौच खाते हैं, दूसरों पर दया कैसे करेंगे।' 'जब पशुओं को वन में ले जाना आवश्यक हो गया।' पत्नी बहुत घबड़ायी थी- 'वन से तृण, शाक, काष्ठ लेने सेवकों को भेजना अत्यन्त निष्ठुर कार्य बन गया। ऐसे गोकुल का जीवन कैसे चलेगा? गोप सशस्त्र आज गलियों में घूम रहे हैं; किंतु रात्रि में प्रतिदिन यह सावधानी कैसे रखी जा सकेगी। सबसे कठिन समस्या शिशुओं की है। इनको आज तो सबने ब्रजराज के भवन में पहुँचा दिया है। श्याम आज मैया की मानकर भवन से नहीं निकला दिनभर; परन्तु कब तक वह या उसके चपल सखा मानेंगे?' 'तुम व्यर्थ मत डरो! मैं इसकी व्यवस्था सोच चुका हूँ!' मैंने पत्नी को कह दिया- 'प्रात: ही पूरे सब गोप सदा के लिए गोकुल त्याग देंगे। हम सब अब वृन्दावन में बसेंगे। तुम प्रस्थान के लिए प्रस्तुत बनो।' |
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