गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 14

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

Prev.png

और क्या होगा भगवन्?
जिन भीष्म, द्रोणाचार्य आदि महारथियों की दृष्टि में तू श्रेष्ठ माना गया है, उनकी दृष्टि में तू तुच्छता को प्राप्त हो जायगा और वे महारथी लोग तेरे को मरने के भय के कारण युद्ध से उपरत हुआ मानेंगे।।35।।

क्या मैं यह सह नहीं सकता भगवन्?
नहीं, तू सह नहीं सकता, क्योंकि तेरे शत्रुओं को वैरभाव निकालने का मौका मिल जायगा। वे तेरी सामर्थ्य की निन्दा करते हुए तुझे न कहनेलायक बहुत-से वचन कहेंगे। उससे बढ़कर और दुःख क्या होगा?।।36।।

और अगर मैं युद्ध करूँ, तो?
युद्ध करते हुए अगर तू मारा जायगा तो तुझे स्वर्ग मिल जायगा और अगर युद्ध में तू जीत जायगा तो तुझे पृथ्वी का राज्य मिल जायगा। अतः हे कुन्तीनन्दन! तू युद्ध का निश्चय करके खड़ा हो जा।।37।।

क्या युद्ध से मुझे पाप नहीं लगेगा भगवन्?
नहीं, पाप तो स्वार्थबुद्धि से ही होता है, अतः तू जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख में समबुद्धि रखकर युद्ध कर। इस प्रकार युद्ध करने से तुझे पाप नहीं लगेगा।।38।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः