गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 15

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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जिस समबुद्धि से कर्म करते जरा भी पाप नहीं लगता, उसकी और क्या विशेषता है भगवन्?
इस समबुद्धि की बात मैंने पहले सांख्यभोग में कह दी है। अब तू इसको कर्मयोग के विषय में सुन-

  1. इस समबुद्धि से युक्त हुआ तू सम्पूर्ण कर्मों के बन्धन से छूट जायगा।
  2. इस समबुद्धि के आरम्भमात्र का भी नाश नहीं होता।
  3. इसके अनुष्ठान का कभी उलटा फल नहीं होता।
  4. इसका थोड़ा-सा भी अनुष्ठान जन्म-मरणरूप महान् भय से रक्षा कर लेता है।।39-40।।

जिस समबुद्धि की आपने इतनी महिमा गायी है, उसको प्राप्त करने का क्या उपाय हैं?
जिस समबुद्धि की प्राप्ति के विषय में व्यवसायात्मि का (एक परमात्मप्राप्ति की निश्चयवाली) बुद्धि एक ही होती है। परन्तु जिनका परमात्म प्राप्ति का एक निश्चय नहीं है, ऐसे मनुष्यों की बुद्धियाँ (निश्चय) अनन्त और बहु-शाखाओं वाली होती हैं।।41।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
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अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
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अध्याय 18 153

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