गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 13

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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तो क्या क्षत्रिय को युद्ध करते ही रहना चाहिये?
नहीं भैया, जो युद्ध आप-से-आप प्राप्त हो जाय, सामने आ जाय वह युद्ध तो क्षत्रिय के लिये स्वर्ग जाने का खुला दरवाजा है। इसलिये हे पार्थ! ऐसा युद्ध जिन क्षत्रियों को प्राप्त होता है, वे ही वास्तव में सुखी हैं[1]।।32।।

ऐसे आप-से-आप प्राप्त युद्ध को मैं न करूँ, तो?
अगर तू ऐसे धर्ममय युद्ध को नहीं करेगा तो तेरे क्षात्र धर्म का और तेरी कीर्ति का नाश होगा तथा तेरे को कर्तव्यपालन न करने का पाप भी लगेगा।।33।।

अपकीर्ति से क्या होगा?
अरे भैया! तू युद्ध नहीं करेगा तो देवता, मनुष्य आदि सभी तेरी बहुत दिनों तक रहने वाली अपकीर्ति का कथन करेंगे। वह अपकीर्ति आदरणीय, सम्माननीय मनुष्य के लिये मृत्यु से भी बढ़कर दुःखदायी होती है[2]।।34।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
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अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. भोगों का मिलना कोई सुख नहीं है, प्रत्युत वह तो महान् दुःखों का कारण है (5।22)। वास्तविक सुख वही है, जो दुःख से रहित हो। दुःख से रहित सुख यही है कि स्वधर्मरूप कर्तव्यकर्म करने का अवसर मिल जाय। अतः जिनको कर्तव्यपालन का अवसर प्राप्त हुआ है, वे ही वास्तव में सुखी और भाग्यशाली हैं।
  2. मरने मात्र से अपकीर्ति नहीं होती; क्योंकि मरना तो हरेक का होता ही है। अपकीर्ति तो अपने कर्तव्य से च्युत होने से ही होती है।

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