ऐसे मनुष्यों की मरने पर क्या गति होती है भगवन्?
तरह-तरह के भ्रमों में पड़े हुए, मोहजाल में उलझे हुए तथा पदार्थों के संग्रह और भोग में आसक्त हुए वे मनुष्य भयंकर नरकों में गिरते हैं।।16।।
भोगों में आसक्त हुए उन आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्यों का पतन करने वाले भाव कौन-से होते हैं?
वे अपने ही पूज्य (श्रेष्ठ) मानने वाले, अकड़ रखने वाले तथा धन और मान के मद में चूर रहने वाले होते हैं।
ऐसे लोग शुभ कर्म भी तो कर सकते हैं भगवन्?
हाँ, वे यज्ञ आदि शुभ कर्म करते तो हैं। पर करते हैं दम्भ (दिखावटीपन) और अविधिपूर्वक तथा नाममात्र के लिये।।17।।
वे ऐसा क्यों करते हैं?
कारण कि वे अहंकार, हठ, घमण्ड, काम और क्रोध का आश्रय लिये हुए रहते हैं।
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