गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 127

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सोलहवाँ अध्याय

Prev.png

ऐसे मनुष्यों की मरने पर क्या गति होती है भगवन्?
तरह-तरह के भ्रमों में पड़े हुए, मोहजाल में उलझे हुए तथा पदार्थों के संग्रह और भोग में आसक्त हुए वे मनुष्य भयंकर नरकों में गिरते हैं।।16।।

भोगों में आसक्त हुए उन आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्यों का पतन करने वाले भाव कौन-से होते हैं?
वे अपने ही पूज्य (श्रेष्ठ) मानने वाले, अकड़ रखने वाले तथा धन और मान के मद में चूर रहने वाले होते हैं।

ऐसे लोग शुभ कर्म भी तो कर सकते हैं भगवन्?
हाँ, वे यज्ञ आदि शुभ कर्म करते तो हैं। पर करते हैं दम्भ (दिखावटीपन) और अविधिपूर्वक तथा नाममात्र के लिये।।17।।

वे ऐसा क्यों करते हैं?
कारण कि वे अहंकार, हठ, घमण्ड, काम और क्रोध का आश्रय लिये हुए रहते हैं।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः