गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 128

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सोलहवाँ अध्याय

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उनके और क्या भाव होते हैं भगवन्?
वे मनुष्य अपने और दूसरों के शरीरों में रहने वाले मुझ अन्तर्यामी के साथ द्वेष करते हैं। तथा मेरे और दूसरों के गुणों में दोष-दृष्टि रखते हैं।।18।।

ऐसे आसुर भावों का क्या परिणाम होता है भगवन्?
उन द्वेष करने वाले, क्रूर स्वभाव वाले और संसार में महान् नीच और अपवित्र मनुष्यों को मैं बार-बार कुत्ता, गधा, बाघ, कौआ, उल्लू, गीध, साँप, बिच्छू आदि आसुरी योनियों में गिराता हूँ।।19।।

फिर क्या होता है?
हे कुन्तीनन्दन! वे मूढ़ मनुष्य मुझे प्राप्त न करके जन्म जन्मान्तर में आसुरी योनियों को प्राप्त होते हैं और फिर उससे भी अधिक अधम गति में अर्थात् भयंकर नरकों में चले जाते हैं।।20।।

उनका अधम योनि में और अधम गति (नरक) में जाने का प्रधान कारण क्या है भगवन्?
काम, क्रोध और लोभ-ये तीन प्रकार के नरक के दरवाजे मनुष्य का पतन करने वाले हैं। इसलिये इन तीनों का त्याग कर देना चाहिये।।21।।

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