महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
वनगमन
"शर्त यह है कि कठिन परीक्षा ले लेने के बाद अपने शरीर को विश्राम देने के लिए मुझे कुछ ललित नृत्य भी नाचने पड़ेंगे। आपको भी उन नृत्यों में नाचना पड़ेगा। अगर आपने मेरी यह चुनौती स्वीकार नहीं की तो मैं आपको फिर अपनी कला नहीं दिखलाऊंगी।" अर्जुन हंसकर बोले- "आपके समान महान कलाकार को मैं इतनी-सी बात के लिए रुष्ट नहीं करूंगा। आप मुझे अपने कठिन नृत्य दिखलायें, मैं फिर आपके साथ अवश्य नाचूंगा।" उर्वशी ने बूढ़े मृदंगाचार्य को अपने पैरों में मालिश के लिए नन्दन वन की एक विशेष जड़ी बूटी तोड़कर लाने की प्रार्थना की। चित्रसेन चला गया। उर्वशी ने अर्जुन से मृदंग बजाने को कहा और फिर कुछ ऐसे कठिन भाव नाच कर दिखलाये जो कला की दृष्टि से तो सचमुच ही बड़े कठिन और उच्चकोटि के प्रदर्शंन थे। मगर साथ ही साथ वे मनुष्य को एकदम मुग्ध भी कर सकते थे। परन्तु महाबली अर्जुन बड़े अनुशासन वाले संयमी युवक थे। जब उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि देवगण की नौकरी में रहने वाली अप्सरायें उनके लिए आदरणीय हैं, तो फिर बड़े से बड़ा लालच भी उनके मन को छू नहीं सकता था, इसलिए उन्होंने केवल उर्वशी की कला की ही तारीफ की। उसके बाद उर्वशी के साथ उन्होंने कुछ नाच के टुकड़े सीखे भी। यों ही अभ्यास चल रहा था कि चित्रसेन जड़ी बूटी लेकर आ गये। उर्वशी ने प्रसन्न होकर कहा- "आप ठीक समय से आए गुरु जी, लीजिए मृदंग सभालिए और मेरे साथ महान नर्तक अर्जुन का नृत्य देखिये।" इस प्रकार चुनौतियां दे देकर उर्वशी ने अर्जुन को अपने बस में कर लिया जो काम गन्धर्व गुरु चित्रसेन नहीं कर पाये थे, वह उर्वशी ने कर दिखलाया परन्तु इसके नृत्य कला सिखलाने के अलावा उर्वशी अर्जुन पर अपना रंग न जमा सकी। उर्वशी को विश्वास था कि जिस अर्जुन को उसने अपना गहरा दोस्त बना लिया है, वह अवश्य ही उसका प्रेमी भी बन जायगा। परन्तु ऐसा न हुआ। एक दिन चित्रसेन ने देवराज इन्द्र से कहा- "महाराज! उर्वशी अर्जुन को नृत्य तो अवश्य सिखला सकी! किन्तु अर्जुन को अपना प्रेमी बनाने में उसे निराशा ही हाथ लगेगी। अर्जुन बहुत ही संस्कारी युवक है। आप ही कृपा करके उर्वशी को समझा-बुझाकर अर्जुन से उसे दूर हटा ले, नहीं तो उर्वशी क्रोध में आकर किसी दिन अर्जुन का कोई भयंकर अपकार कर देगी और आप दुखी होंगे।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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