महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
बाप बेटे की लड़ाई
सचमुच ऐसा ही हुआ। उलूपी रानी अपने साथ एक ऐसी औषधि लायी थी कि जो किसी प्रकार के विष को तुरन्त उतार दे। दस-पंद्रह मिनट के भीतर ही दोनों रानियों के सौभाग्यनाथ अर्जुन ने आंखें खोल दीं। फिर तो मणिपुर आनन्द से उमंग उठा। अपनी रानियों और बेटे वभ्रुवाहन के साथ महाबली अर्जुन ने सुखपूर्वक कुछ समय बिताया फिर उन सबको अश्वमेध यज्ञ में आने का निमंत्रण देकर वे आगे बढ़े। इस समय असम से लेकर गान्धार तक सारे उत्तर भारत के राजा उनके काबू में आ गये थे। दक्षिण भारत उस समय जहाँ तक आबाद था। पाण्डवों का पक्षधर था। अश्वमेध यज्ञ के बहाने सारा भारतवर्ष एक बार फिर से संगठित हो गया। जिन राजा-महाराजाओं ने तब तक किसी शक्तिशाली सम्राट की अधीनता नहीं स्वीकार की थी वे भी पाण्डवों के आगे विनत हो गये। उस समय भारतवर्ष में कई तरह की राज प्रणालियां चलती थीं। कहीं राजा राज करता था तो कहीं पंचायत। कहीं दो कबीलों की सम्मिलित पंचायत मिलकर राज करती थी तो देश के कुछ भाग इतने सभ्य भी थे कि वहाँ कोई राजा या मंत्री होता ही न था। वहाँ लोग इतने सभ्य और संगठित थे कि कभी फूट ही नहीं पड़ती थी। मनुष्य अपना सोना चाहे उछालता चले किन्तु दूसरा मनुष्य कभी उसके सोने को छीनने तथा चोरी करने का विचार तक अपने मन में नहीं लाता था। इस तरह राज्य, वैराज्य, द्वैराज्य और अराजक राज्य जैसी बहुत-सी शासन प्रणालियों वाले भारतीय समाज की अच्छी परम्पराओं को तनिक भी नुकसान पहुँचाये बिना पाण्डव साम्राज्य के रूप में एक ऐसे भारत का निर्माण हुआ जो विभिन्न होते हुए भी एक जगह पर अभिन्न था। निश्चित समय पर महाराज युधिष्ठिर का अश्वमेध यज्ञ हुआ और हस्तिनापुर में कुछ महीनों तक बड़ी चहल-पहल रही। इस प्रकार महानाश के बाद नये निर्माण का आरम्भ होने लगा। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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